एक बड़े राज्य की राज्यपाल ने सस्ते भोजन की महत्ता बताते हुए एक समारोह में कहा कि भोजन मिले तो कोई अपराध नहीं करना चाहेगा। इस वाक्य का तर्कशास्त्रीय विस्तार करें तो इसके कई मतलब निकलते हैं। जैसे- अपराध केवल गरीब करता है क्योंकि वही भूखा होता है या जो अपराध संपन्न वर्ग करता है वह अपराध नहीं होता क्योंकि उसे करने वाला भूखा नहीं होता।
महामहिम, संतोषी भात-भात करती मरी पर उसने चोरी नहीं की
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- 25 Mar, 2021

संतोषी के परिवार को कोटे का अनाज छह माह से नहीं मिल रहा था क्योंकि उनका राशन कार्ड निरस्त कर दिया गया था। कारण था उस कार्ड का आधार नंबर से लिंक न होना। संतोषी के पिता का कहना था कि अपनी मजदूरी छोड़ कर कई बार वह लिंक कराने दफ्तर गया लेकिन हर बार “नेट नहीं है” जैसा कुछ कह कर उसे वापस भेज दिया जाता था।
100 करोड़ उगाही
यानी अगर एक मंत्री पुलिस अफसर को 100 करोड़ हर माह उगाहने का सहज तरीका बताता है तो न तो मंत्री अपराधी है न ही अफसर क्योंकि दोनों भूखे नहीं हैं। वह पुलिस कमिश्नर भी नहीं जिसके सामने उसके मातहत से यह सब कहा गया फिर उसने बाद में महीनों तक कुछ नहीं कहा लेकिन जैसे ही पद से हटाया गया तो उसे ब्रह्मज्ञान हो गया और उसने मुख्यमंत्री को लिख मारा।
एनसीपी के नेता जो उस मंत्री को बचाते रहे, वह भी अपराधी नहीं, जो मुख्यमंत्री यह सब कुछ सुनकर सरकार जाने के भय से धृतराष्ट्र बना रहे वह भी नहीं क्योंकि ये सब कभी भूख से नहीं तड़पे और अगर तड़पे भी तो अति-भक्षण से और वह भी अनाज का नहीं।