ममता बनर्जी की ताज़ा राजनीतिक तोड़फोड़ ने अचानक से देश भर में उत्सुकता पैदा कर दी है। आरोप यह है कि ऊपरी तौर पर तो ममता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लड़ती हुई नज़र आ रही हैं पर वे विध्वंस कांग्रेस का करने में जुटी हैं जहां से नाराज़ करके ही उन्होंने अपनी नई पार्टी (तृणमूल कांग्रेस) के ज़रिए पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादियों से लड़ाई शुरू की थी। कांग्रेस हाल तक सिर्फ़ बीजेपी से ही डरी-सहमी रहती थी पर अब उसके लिए नया ख़ौफ़ ममता की ओर से भी शुरू हो गया है। उत्तर भारत के लोग नंदीग्राम के बाद ममता का कांग्रेस के ख़िलाफ़ चण्डी पाठ प्रारम्भ करने का सही कारण तलाशना चाह रहे हैं।
मोदी के सपनों का कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने में जुटी हैं ममता?
- विचार
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- 28 Nov, 2021

बड़ा सवाल यह है कि जब ममता के ही रणनीतिकार प्रशांत किशोर का ऐसा मानना है कि देश भर में दो सौ से ज़्यादा लोकसभा सीटें कांग्रेस के प्रभाव क्षेत्र की हैं तो ऐसी स्थिति में वे एक बड़े राष्ट्रीय दल को अलग रखकर तृणमूल को विपक्षी एकता की धुरी बनाने में कैसे कामयाब हो पाएँगी?
क्या ममता बनर्जी की आकांक्षाएँ प्रधानमंत्री के पद पर स्वयं को विराजित देखने की उत्पन्न हो गई हैं? इस विषय पर बहस हाल-फ़िलहाल के लिए टाली जा सकती है कि प्रधानमंत्री पद पर उनकी उम्मीदवारी पश्चिम बंगाल के बाहर शेष देश में उस प्रकार से स्वीकार्य हो सकेगी कि नहीं जैसी कि मोदी की हो गई थी। साथ ही यह भी कि क्या देश ऐसे किसी अहिंदी-भाषी मुख्यमंत्री को स्वीकार कर पाएगा जिसकी लोकतांत्रिक मूल्यों, अभिव्यक्ति की आज़ादी और विपक्ष के अस्तित्व को लेकर छवि मोदी से ज़्यादा भिन्न नहीं है।