कुछ दिनों पहले नोएडा में एक सड़क दुर्घटना के बाद एकत्रित हुए तमाशबीनों को कार के ड्राईवर ने अपना हिन्दू नाम बताया लेकिन जब पुलिस पहुँची और उसका लाइसेंस देखा तो वह मुसलमान निकला। पूछने पर उसने बताया कि हिन्दू नाम रखने से काम मिलता है और सुरक्षा की “फीलिंग” भी रहती है।
केवल 'बहुमत ही सत्य है' - ये सोच ख़तरनाक है
- विचार
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- 25 Jan, 2021

देश ने देखा कि केंद्र का एक मंत्री नारा लगाते हुए “देश के गद्दारों को” कह रहा था और जनता से हाथ से इशारे कर “गोली मारो...को” कहलवा रहा था जबकि एक स्थानीय नेता “24 घंटे के बाद तो हम अपनी भी नहीं सुनेंगे” कह एक पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में धमकी दे रहा था लेकिन पुलिस को इनमें कोई भड़काऊपन नहीं दिखा जबकि उमर खालिद द्वारा सुदूर अमरावती में दिया गया भाषण जिसमें बार-बार शांतिपूर्ण आन्दोलन की अपील थी, भड़काऊ और राष्ट्र के खिलाफ षड्यंत्रकारी लगे।
ऐसी आदत पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ी है। शायद इसका कारण अखलाक, पहलू खान, जुनैद और तबरेज का धार्मिक-भावनात्मक आधार पर भीड़ द्वारा मारा जाना है।
पिछले हफ्ते बीजेपी-शासित उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी विधायक सोमनाथ भारती पर एक उत्साही युवा द्वारा स्याही फेंकना और उतने ही उत्साह का मुजाहरा करते हुए पुलिस द्वारा युवक को छोड़ विधायक को जेल में डालना, “लव-जेहाद” का स्मोक स्क्रीम खड़ा कर नागरिक स्वतंत्रता के संविधान-प्रदत्त अधिकार का दमन करना, एक नया धर्म-परिवर्तन कानून चस्पा कर एक माह में उत्तर प्रदेश में 14 मामलों में अल्पसंख्यक समुदाय के 49 लोगों को जेल में डालना जबकि हिन्दू महिलाओं की तरफ से शिकायत केवल दो में ही हुई हो, देश में बहुसंख्यक आतंक का एक नया अध्याय है। इसके मूल में अल्पसंख्यकों की “बलात सहमति” हासिल करना होता है।