महात्मा गांधी का विचार और उनकी ज़रूरत वर्तमान की विभाजनकारी राजनीति के लिए चरखे के बजाय मशीनी खादी से बुनी गई ऐसी नक़ाब हो गई है जिसके पीछे उनकी सहिष्णुता, अहिंसा और लोकतंत्र का मज़ाक़ उड़ाने वाले क्रूर और हिंसक चेहरे छुपे हुए हैं। ये चेहरे गांधी विचार की ज़रा-सी आहट को भी किसी महामारी की दस्तक की तरह देखते हैं और अपने अनुयायियों को उसके प्रतिरोध के लिए तैयार करने में जुट जाते हैं। यही कारण है कि ग्वालियर में हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रतिमा की बिना किसी विरोध के प्राण-प्रतिष्ठा हो जाती है और अलीगढ़ में राष्ट्रपिता के पुतले पर सार्वजनिक रूप से गोलियाँ चलाकर तीस जनवरी 1948 की घटना का गर्व के साथ मंचन कर दिया जाता है।
गांधी का ‘डांडी मार्च‘ ‘डंडा मार्च’ में बदल दिया गया है!
- विचार
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- 2 Oct, 2024

आज यानी दो अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती है। गांधी को आज किस रूप में याद किया जा रहा है। जानिए, उनकी सहिष्णुता और अहिंसा की आज कितनी ज़रूरत।
(दुर्गा पूजा के अवसर पर दो साल पहले कोलकाता में अखिल भारतीय हिंदू महासभा द्वारा बनाए गए पंडाल में बापू जैसी दिखने वाली प्रतिमा को असुर की छवि में प्रस्तुत किया गया था। पूजा के आयोजकों का कहना था कि यह संयोग हो सकता है कि बापू असुर जैसे नज़र आ रहे हों पर आज़ादी के आंदोलन में गांधी की भूमिका की आलोचना अवश्य होनी चाहिए।)