महात्मा गांधी का विचार और उनकी ज़रूरत वर्तमान की विभाजनकारी राजनीति के लिए चरखे के बजाय मशीनी खादी से बुनी गई ऐसी नक़ाब हो गई है जिसके पीछे उनकी सहिष्णुता, अहिंसा और लोकतंत्र का मज़ाक़ उड़ाने वाले क्रूर और हिंसक चेहरे छुपे हुए हैं। ये चेहरे गांधी विचार की ज़रा-सी आहट को भी किसी महामारी की दस्तक की तरह देखते हैं और अपने अनुयायियों को उसके प्रतिरोध के लिए तैयार करने में जुट जाते हैं। यही कारण है कि ग्वालियर में हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रतिमा की बिना किसी विरोध के प्राण-प्रतिष्ठा हो जाती है और अलीगढ़ में राष्ट्रपिता के पुतले पर सार्वजनिक रूप से गोलियाँ चलाकर तीस जनवरी 1948 की घटना का गर्व के साथ मंचन कर दिया जाता है।