लॉकडाउन में ढील मिलते ही राज्य सरकारों ने शराब की दुकानों को क्या खोला, वहाँ से एक से बढ़कर एक तसवीरें सामने आने लगीं। तमाम तरह की बातें सुर्ख़ियाँ बनीं। सोशल मीडिया को शानदार मसाला मिला। शराब के प्रति जनता का ऐसा उत्साह उमड़ा कि सोशल डिस्टेंसिंग की हिदायतें पनाह माँगने लगीं और पुलिस के लिए नया सिरदर्द पैदा हो गया।
शराब बेचना क्यों ज़रूरी, कोरोना बढ़े तो बढ़े
- विचार
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- 7 May, 2020

सरकारों को कमाई पेट्रोल-डीजल और शराब पर लगने वाले टैक्स से होती है। लेकिन कोरोना संकट में ये कमाई ख़त्म हो गई और कई राज्य सरकारों के सामने अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसा जुटाने का संकट खड़ा हो गया। राज्यों का ख़ज़ाना खाली हुआ तो दिखने लगा कि केन्द्र सरकार की हालत तो और ख़राब है। इसने चार महीने से राज्यों को उनके हिस्से वाले जीएसटी का पैसा तक नहीं दिया है।
मौके़ पर चौका लगाते हुए राज्य सरकारों ने शराब के दाम में 70 से 75 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा कर दिया। शराब को नैतिकता के लिए घातक और सामाजिक बुराई की सबसे बड़ी वजह बताने वालों ने तरह-तरह के उपदेशों का अम्बार लगा दिया तो सरकारों को अपनी चरमरा चुकी माली हालत का वास्ता देकर शराब की बिक्री को सही ठहराना पड़ा।
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली