किसानों के लिए बनाये गए तीन क़ानून आज मोदी सरकार के गले की हड्डी बन गए हैं। सत्ता के गुरूर में किसी भी बड़े क़ानून को बनाने के सर्वमान्य तरीकों को ठेंगे पर रखा गया, नतीजतन किसान भड़क गए। जो आंदोलन पहले मात्र पंजाब और हरियाणा के किसानों तक सीमित था, राष्ट्रीय स्वरुप ले रहा है क्योंकि आंदोलनकारियों ने स्थिति को देखते हुए मांग की धारा मोड़ दी है।
एमएसपी पर ख़रीद का क़ानूनी हक़ दे पाएगी मोदी सरकार?
- विचार
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- 28 Dec, 2020
बिहार में धान 1100 रुपये कुंतल में बिका जबकि एमएसपी 1868 रुपये है और मक्का 800 रुपये जबकि एमएसपी 1800 रुपये है। टमाटर, आलू या प्याज के भाव इतने गिर जाते हैं कि ढुलाई का खर्च नहीं निकलता लिहाज़ा इन्हें सड़कों पर फेंका जाता है। दाम बढ़ा तो फायदा आढ़तिया की जेब में लेकिन किसान को नुक़सान उठाना पड़ता है।
किसानों की अब मूल मांग है- एमएसपी को क़ानूनी अधिकार बनाना और वह भी सी-2 (कॉम्प्रिहेंसिव कास्ट- जिसमें ज़मीन का किराया या अगर मालिक खुद खेती करता है तो जमीन की कीमत पर ब्याज) फ़ॉर्मूले के तहत जिसमें गेहूं की लागत करीब 1600 रुपये आती है और इसपर 50 फीसदी जोड़ने पर एमएसपी 2400 रुपये प्रति कुंतल होता है।