किसी भी दल या धर्म विशेष के प्रति प्रतिबद्ध किंतु परम्परागत रूप से सहिष्णु नागरिकों को अगर सुनियोजित तरीक़े से समझा दिया जाए कि राष्ट्र की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए धार्मिक ‘असहिष्णुता’ का ‘औचित्यपूर्ण’ इस्तेमाल अब आवश्यक हो गया है तो बिना किसी सैन्य हस्तक्षेप अथवा मदद के भी नितांत अहिंसक हथियारों के ज़रिए ही एक जागृत प्रजातंत्र को संवेदनशून्य अधिनायकवादी व्यवस्था में बदला जा सकता है।
बड़े अपराधी तो कंगना के कहे पर तालियाँ बजाने वाले लोग हैं!
- विचार
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- 15 Nov, 2021

भारतीय राजनीति में यह एक सर्वथा नया प्रयोग है कि आज़ादी प्राप्ति की नई अवधारणा की स्थापना में किसी परिपक्व महिला नेत्री अथवा साधु-साध्वियों के स्थान पर एक फ़ैशनेबल सिने तारिका कहीं ज़्यादा प्रभावशाली साबित हो सकती है।
अन्यान्य कारणों से लगातार विवादों/सुर्ख़ियों में बनी रहने वाली सिने तारिका कंगना रनौत जब बिना किसी तर्क के यह कहती हैं कि देश को असली आज़ादी 1947 में (गांधी के नेतृत्व में) नहीं बल्कि 2014 में (नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में) मिली है और जब जाने-माने विधिवेत्ता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सलमान ख़ुर्शीद तार्किक आधार पर चिंता ज़ताते हैं कि ‘राजनीतिक’ हिंदुत्व हमारे संतों और ऋषि-मुनियों द्वारा प्रतिपादित हिंदुत्व से भिन्न है तो हम वर्तमान में अपने आसपास घट रहे घटनाक्रम को आसानी से समझ सकते हैं।