किसी भी दल या धर्म विशेष के प्रति प्रतिबद्ध किंतु परम्परागत रूप से सहिष्णु नागरिकों को अगर सुनियोजित तरीक़े से समझा दिया जाए कि राष्ट्र की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए धार्मिक ‘असहिष्णुता’ का ‘औचित्यपूर्ण’ इस्तेमाल अब आवश्यक हो गया है तो बिना किसी सैन्य हस्तक्षेप अथवा मदद के भी नितांत अहिंसक हथियारों के ज़रिए ही एक जागृत प्रजातंत्र को संवेदनशून्य अधिनायकवादी व्यवस्था में बदला जा सकता है।