भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदी तीन दिन की यात्रा पर अमेरिका पहुँचे हैं। उनकी यात्रा की पूर्व संध्या पर भारतीय मूल की डेमोक्रेट उम्मीदवार व वर्तमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने मिशीगन राज्य के फ़ार्मिंग्टन नगर ‘अमेरिका के लिए एकजुट हो (unite for america)’ के आयोजन में शिरकत करके प्रधानमंत्री मोदी को राजनैतिक संकेत दे दिया है। आयोजन की विशेषता यह है कि इसकी संरचना राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो और भारत न्याय यात्रा’ की तर्ज़ पर दिखाई दे रही है।
कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गाँधी ने अपनी दोनों यात्राओं में सामान्य जन के साथ संपर्क व संवाद स्थापित करके अपनी एक नई छवि का निर्माण किया था। ठीक इसी अंदाज़ में हैरिस भी समाज के विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ रू-ब -रू हो कर उनकी नितांत संवेदनशील व भावनात्मक अनुभवों पर संवाद करती हुई दिखाई देती हैं। उनका यह संवाद अमेरिका की उन बेटियों के साथ होता है जिन्होंने बलात्कार, सामाजिक दुत्कार, गन- हिंसा, गर्भपात के बाद के ताने, एकल मातृत्व जीवन जैसी पीड़ाओं का सामना करते हुए गरिमापूर्ण जीवन जीती आ रही हैं। वास्तव में, इस आयोजन ने राहुल गांधी की यात्रा और संवाद शैली को ताज़ा कर दिया है; भारत जोड़ो और अमेरिका के लिए एकजुट या एकताबद्ध हो, दोनों ही आयोजनों में समान ध्वनियाँ गूंजती हैं। सन्देश भी समान हैं। जहाँ गांधी एक सृजनात्मक व संवेदनशील भारत के निर्माण के लिए प्रयासरत हैं, वहीं कमला हैरिस की भूमिका से भी यही प्रतिध्वनित होता है।
डोनाल्ड ट्रम्प की राजनीति ने अमेरिकी समाज को काफी विभाजित किया है। लेकिन, हैरिस की सभा में अमेरिकी समाज की नस्ली विविधता की छटा बिखरी हुई थी। हैरिस कहती हैं कि ट्रम्प गर्भपात के विरुद्ध हैं, लेकिन गन हिंसा पर खामोश हैं। गन नीति को बदलना नहीं चाहते हैं। गन हिंसा से ज़्यादतर बेटियां-माताएं प्रभावित होती हैं। गन -हिंसा से जैसे-तैसे बच कर निकली एक नाबालिग की दर्दीली कहानी ने सभागार में लोगों को रुला दिया। कमला की टिप्पणी थी- ट्रम्प का ध्यान इस तरफ़ नहीं जायेगा। लेकिन गर्भपात के विरुद्ध बेलगाम बोलेंगे। अवैध गर्भ की शिकार स्त्री पर खामोश रहेंगे।
आमतौर पर मिशीगन राज्य में दोनों ही दलों का कम-अधिक प्रभाव माना जाता है। लेकिन, अंतिम क्षणों में यह किधर भी झुक सकता है। यह भी माना जाता है। ऐसे चंचल प्रान्त के नगर में कमला हैरिस के लिए सार्वजनिक सभा का आयोजन स्वयं में महत्वपूर्ण है। आयोजक भी कम महत्वपूर्ण नहीं थीं। अश्वेत ओपराह विनफ्रे हॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री रह चुकी हैं। विभिन्न सामाजिक -सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के माध्यम से देश का ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट करती रहती हैं।
बेशक, दर्शकों का दिल-दिमाग जीतने में कमला हैरिस सफल भी रहीं। उन्होंने भी शांति, गरिमा, सहनशीलता, शालीनता और अमेरिकी महत्वाकांक्षा की बातें कीं। राहुल गांधी के समान उदितमान उद्यमियों की समस्याओं को जाना -सुना।
कमला हैरिस के लिए आयोजित इस कार्यक्रम ने मोदी जी के लिए कुछ समस्या ज़रूर खड़ी कर दी है। पिछले कुछ समय से भारत स्त्री -उत्पीड़न की घटनाओं से काफी घिर चुका है। कोलकाता की बलात्कार -घटना ने हिला कर रख दिया है। भाजपा शासित राज्यों की स्थिति भी दागदार है। ऐसी पृष्ठभूमि में इस आयोजन के होने से मोदी जी सहज तो नहीं रहेंगे क्योंकि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ -स्त्री सशक्तिकरण‘ के अभियान पर सवाल तो उठेंगे ही। इस आयोजन ने प्रवासी भारतीयों को भी प्रभावित किया है। पहले वे मोदी के पीछे कतारबद्ध रहे हैं। लेकिन,अब मोदी भक्ति दरक चुकी है। विभिन्न अनिवासी भारतीयों से बातचीत से इतना तो साफ़ है कि मोदी की वज़ह से गुजराती व मराठी समुदाय ट्रम्प की तरफ झुके हुए हैं। लेकिन, परिवार विभाजित है। स्त्रियों का झुकाव कमला की ओर भी है। पर, दक्षिण भारत का प्रवासी समुदाय कमला हैरिस के साथ माना जा रहा है। मोदी के प्रति रुझान घटता जा रहा है। हालाँकि, मोदी जी के लिए सभा का आयोजन किया जा रहा है। क़रीब 24 हज़ार भारतीयों के शिरक़त करने की आशा है। लेकिन, अब सिर्फ रस्मअदायगी से अधिक कुछ नहीं होगा। ऐसा कहना है गैर- गुजराती अनिवासी भारतियों का।
राहुल गांधी की छवि काफी निखरी भी है। उनके त्रि-सूत्री मन्त्र - प्रेम, आदर और शालीनता को प्रवासियों ने पसंद किया है। पिछले दिनों भाजपा के कतिपय नेताओं ने राहुल के प्रति जो अपशब्द कहे हैं, उन्हें नापसंद किया जा रहा है। अब प्रधानमंत्री का बड़बोलापन बेलगाम नहीं रहेगा। वे संयत भाषा का प्रयोग करेंगे, ऐसा मन जा रहा है। उनके सामने विकल्प सीमित हैं। यदि वे अपने जिगरी दोस्त डोनाल्ड ट्रम्प से मिलते हैं और कमला हैरिस से नहीं, तो दक्षिण भारत भाजपा के हाथ से निकल जायेगा। अनिवासी भारतीयों के परस्पर संबंध पहले जैसे नहीं रहेंगे। राजनैतिक समझदारी यही है कि वे दोनों उम्मीदवारों से मिलें या बगैर मिले ही स्वदेश लौट जाएं। इस यात्रा में भारत के विदेश विभाग के नेतृत्व के साथ साथ मोदी जी के राजनैतिक चातुर्य की भी परीक्षा हो जाएगी।
भारत में आमतौर पर प्रचारित किया जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी मीडिया में छाए रहते हैं। पिछले तीन -चार दिनों से किसी भी मुख्य मीडिया में मोदी जी का उल्लेख तक नहीं हुआ है। अलबत्ता सोशल मीडिया में ज़रूर चलताऊ तर्ज़ में नोटिस लिया जाता है। लेकिन, सोशल मीडिया में मोदी - विरोधी का भी नोटिस लिया गया है। साफ़ शब्दों में प्रचार किया गया है कि मोदी का स्वागत नहीं होगा। वैसे पिछली यात्राओं में भी होता रहा है। लेकिन, अब उनकी पहली जैसी स्थिति नहीं रही है। लोकसभा में भाजपा के बहुमत की हेकड़ी निकल चुकी है। कमला हैरिस के साथ भी उनके संबंध सहज नहीं हैं। लेकिन, कमला अमेरिका की उपराष्ट्रपति हैं, मोदी जी इस स्थिति को नज़रअंदाज़ भी नहीं कर सकते।
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