पांच नवंबर को मतदान है। राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन दावेदार डोनाल्ड ट्रम्प के मध्य शब्द जंग तेज़ होती जा रही है। दोनों परस्पर आरोपों के अम्बार लगा रहे हैं। गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं। चुनाव प्रचार में हिंसा की धमकियाँ मिलने लगी हैं। शांतिपूर्ण चुनाव नहीं होंगे, ऐसी आशंकाएं व्यक्त होने लगी हैं। छोटे परदे पर बहस के दौरान ऐसे आरोपों की झड़ी देख-सुन कर भारत के चैनलों पर एंकरों और पैनलिस्टों की मुद्राएं याद हो आती हैं; पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम ( पी.बी. एस.) को छोड़ शेष चैनल कम -ज़्यादा चीखने लगते हैं। दोनों पद -दावेदारों के नुमाइंदों की काया - भाषा धमकी भरी रहती है। आज हैरिस ने मिशीगन में धुआंधार प्रचार किया, वहीं ट्रम्प ने न्यूयॉर्क में मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की। मुद्रास्फीति को लेकर बाइडन -शासन की खिंचाई की। हैरिस और ट्रम्प दोनों ही ढुलमुल मतदाताओं की समस्या का सामना कर रहे हैं। बताया जाता है कि डेमोक्रैट के 7 लाख मतदाता ऐसे हैं, जिन्होनें हैरिस के पक्ष में मतदान का अंतिम निर्णय नहीं लिया है। यही समस्या ट्रम्प की भी है। वज़ह यह भी है कि बाइडन -शासन गज़ा - इसराइल जंग को रुकवाने में अभी तक विफल है। इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू की निरंकुशता पर लगाम नहीं लगा सके हैं और न ही अमेरिका से शस्त्रों की सप्लाई को रोका गया है। इस मुद्दे पर अभी कमला हैरिस की दो टूक दृष्टि को सामने आना शेष है। डेमोक्रैट- समर्थक मतदाता चाहते हैं कि कमला हैरिस अपनी निर्णायक दृष्टि सामने रखें और तेल अवीव को समर्थन देना बंद करें। यदि वे ऐसा नहीं करती हैं तो ढुलमुल मतदाता खिसक सकते हैं। लेकिन, इससे ट्रम्प को भी लाभ मिलने वाला नहीं है। उन्हें मुस्लिम विरोधी और कट्टर इसराइल समर्थक के रूप में देखा जाता है। ट्रम्प ने आज फिर यह दोहराया है कि वे अवैध हैतियों को बाहर खदेड़ देंगे। दिलचस्प जानकारी यह है कि कोई भी अवैध नहीं है। उन्हें संघीय सरकार से संरक्षण मिला हुआ है।
दूसरी तरफ़ सीक्रेट पुलिस और फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन के कर्मियों की भी ट्रम्प पर दो जानलेवा हमलों की तह में जाने की क़वायदों को मीडिया में जम कर परोसा जाता है। दोनों एजेंसियों की छान-बीन को गंभीरता से दिखाया और प्रकाशित किया जा रहा है; एक हमलावर मारा जा चुका है, दूसरा गिरफ्तार किया जा चुका है। लेकिन, बहसतलब मुद्दा यह है कि जानलेवा हमलों के असली सूत्रधार आज तक लापता माने जा रहे हैं। जानलेवा हमलों की पटकथा का असली लेखक अदृश्य है, ऐसा मानना है लोगों का।
याद रहे कि 1963 में राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी के हत्यारे ओसवाल्ड को पकड़ लिया गया था। लेकिन, उसे भी एक क्लब के मालिक जैक रूबी ने सरेआम शूट कर दिया था। इस पृष्ठभूमि में क़यासी घोड़े दौड़ाये जा रहे हैं। अभी मतदान में क़रीब डेढ़ महीना बाक़ी है। इससे पहले के हुए चुनावों में हिंसा के आसार नहीं देखे गए थे। 2016 में डेमोक्रेट प्रत्याशी हिलेरी क्लिंटन और ट्रम्प के बीच कड़ी टक्कर थी। उस समय भी डोनाल्ड ट्रम्प का कड़ा विरोध हुआ था। तब भी मतदाताओं के ध्रुवीकरण की बातें सामने आई थीं। ट्रम्प पर आरोप लगा था कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन का क्लिंटन की हार में हाथ रहा है। सभी जानते हैं कि क्लिंटन ‘आम मतदान’ में जीती थीं, लेकिन इलेक्टोरल सिस्टम की वोटिंग में ट्रम्प से हार गयी थीं। मौज़ूदा चुनावों में भी इसी प्रकार की शंकाएं व्यक्त की जा रही हैं; फिलिडेल्फिआ, जॉर्जिया जैसे प्रांतों के इलेक्टोरल वोट ट्रम्प की झोली में जा सकते हैं। हैरिस के ‘पॉपुलर वोट’ में जीतने की पूरी सम्भावना मानी जाती है, लेकिन स्विंग राज्यों के इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों को संदेहास्पद समझा जाता है। लेकिन, ताज़ा आसार बतलाते हैं कि दोनों के बीच काँटे की टक्कर बन चुकी है। अमेरिका पारम्परिक रूप से पुरुष वर्चस्व प्रधान देश माना जाता है; 18वीं सदी से लेकर 2020 तक कोई भी महिला व्हॉइट हाउस (राष्ट्रपति निवास) पहुँचने में सफल नहीं हुई हैं। हिलैरी क्लिंटन ने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ कर इतिहास ज़रूर बनाया था। लेकिन, मंज़िल तक पहुंच नहीं सकी थीं। आज ही उन्होंने ट्रम्प पर टिप्पणी की है, “ट्रम्प इस बार अधिक गुस्सैल और बेतरतीब हो गए हैं।”
वैसे, आम जनता की दृष्टि में ट्रम्प अब भी तानाशाह, फासीवादी, निरंकुश, श्वेत नस्ल वर्चस्वादी, नारी अधिकारों का विरोधी और मैनहट्टन में पार्क एवेन्यू के खरबपति बाशिंदों के समर्थक हैं। हाल ही में अमेरिकन फेडरेशन ऑफ़ टीचर्स के अध्यक्ष रैंडी वेगार्टेन का वक्तव्य प्रकाशित हुआ है। न्यूयॉर्क टाइम्स में बॉक्स विज्ञापन के रूप में छपे वक्तव्य में वेगार्टेन कहते हैं “डोनाल्ड ट्रम्प चरम अलोकप्रिय ‘प्रोजेक्ट 2025’ को अधिकाधिक लागू करना चाहते हैं, लेकिन इससे स्वयं को अलग रखने के ट्रम्प के प्रयास तनिक भी सफल नहीं होंगे।”
भारत को किस युग की चेतना में धकेला जा रहा है? मोदी स्वयं को ‘नॉन बायोलॉजिकल‘ मानते हैं। जब भारत मंगल ग्रह की सतह पर थाप देने की महत्वाकांक्षा पाले हुए है और प्रधानमंत्री को ‘अवतारी श्रेणी’ में रखने की कुचेष्टाएँ की जा रही हैं, क्या यह आधुनिक चेतना के साथ विश्वासघात नहीं है?
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