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सेल्फ रिस्पेक्ट और सिंधिया महाराज!

ये अच्छा ही हुआ कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले ही ये साफ़ कर दिया है कि उन्होंने 2020 में कांग्रेस पद के लिए नहीं, बल्कि 'सेल्फ रिस्पेक्ट' के लिए छोड़ी। 'सेल्फ रिस्पेक्ट' और 'जनसेवा' सिंधिया परिवार की बीमारी है। ये परिवार बीते 75 साल से इसीलिए राजनीति में दल बदल करता रहता है।

सिंधिया परिवार के बारे में देश मुझसे ज्यादा जानता है, क्योंकि ये परिवार तब से राजनीति में है, तब मैं पैदा भी नहीं हुआ था। बावजूद मुझे भी ग्वालियर में आधी सदी बिताने की वजह से सिंधिया परिवार के बारे में बहुत कुछ ज्ञात है। कुछ जानकारी किताबी है और कुछ का मैं चश्मदीद हूं। इस बिना पर मुझे लगता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया झूठ नहीं बोल रहे।

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चैनल टाइम्स नाऊ के इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव 2023 में बोलते हुए  ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि वे किसी पद की लालसा में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में नहीं आए थे। उन्होंने कांग्रेस इसलिए छोड़ी थी क्योंकि उन्हें बार-बार अपमानित किया गया। कांग्रेस पार्टी ने लोगों से जो वादे किए थे, उन्हें पूरा नहीं किया गया। जब बात एक सीमा से बाहर चली गई तो उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का फ़ैसला किया क्योंकि उनका मक़सद केवल जनसेवा है।

सिंधिया पारदर्शी नेता हैं, लेकिन आप उनके भीतर आसानी से झाँक नहीं सकते। वे  शायद झूठ नहीं बोलते। उनके यहां झूठ बोलने के संस्कार हैं ही नहीं। सिंधिया परिवार झूठ बोलने के बजाय मौन होऩा ज्यादा पसंद करता है। इसी वजह से सिंधिया ने कहा कि ऐसा नहीं है कि वे भविष्य में आगे बढ़ने की इच्छा नहीं रखते। उनकी भी महत्वाकांक्षाएं हैं। हर इंसान की तरह वे भी नई जिम्मेदारियों की अपेक्षा रखते हैं। वे दौड़ में तो शामिल हैं, लेकिन किसी पद के लिए नहीं। उनकी दौड़ जनसेवा के लिए है। लोगों की उम्मीदें पूरी करने के लिए है।

सिंधिया के कथन के आप जितने चाहें उतने अर्थ निकाल सकते हैं। कोई आपको रोकने वाला नहीं है। मुझे भी कभी रोका नहीं गया। सिंधिया परिवार को बहुसंख्यक लोग 1857 के गदर के प्रसंग में ‘गद्दार’ कहते नहीं थकते, लेकिन इससे सिंधिया परिवार की राजनीति पर कोई फर्क नहीं पड़ा। ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजया राजे सिंधिया, और पिता माधव राव सिंधिया ने अलग अलग दलों में रहकर ठप्पे से राजनीति की।
आजादी के 73 साल बाद और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान के डेढ़ सौ साल बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लक्ष्मी बाई की समाधि पर माथा टेकने में भी कोई संकोच नहीं किया। उनके पिता और दादी ये साहस नहीं जुटा सके।
इस लिहाज से ज्योतिरादित्य सिंधिया साहसी नेता हैं। वे अपनी पर आए तो उन्होंने 2018 में शिवराज सिंह चौहान की डेढ़ दशक पुरानी सरकार को ध्वस्त कर दिखाया। तब लड़ाई कमलनाथ बनाम शिवराज नहीं बल्कि महाराज बनाम शिवराज थी।
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सिंधिया आपे से बाहर हुए तो 2020 में कमलनाथ सरकार की बलि लेकर माने। सिंधिया के लिए सरकार नहीं सेल्फ रिस्पेक्ट प्रमुख है। ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा साहस उनके पिता में नहीं था। वे जनसंघ में रहे। निर्दलीय चुनाव लड़े। कांग्रेस में रहे, निकाले गये लेकिन भाजपा में नहीं गए। भाजपा उनके पीछे खड़ी रही। माधव राव सिंधिया वापस कांग्रेस में लौट गए। वे सेल्फ रिस्पेक्ट के बारे में अपने बेटे की तरह नहीं सोच सके, हालांकि उनकी मां राजमाता ने इसी सेल्फ रिस्पेक्ट के लिए कांग्रेस ही नहीं छोड़ी बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र की सरकार भी गिरा दी थी।  सिंधिया अपने पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया को अपना आदर्श मानते हैं लेकिन वे पिता से चुप रहना नहीं सीख पाए। माधव राव सिंधिया हमेशा एक बात कहते थे - “जीवन का मक़सद राजनीति करना या कोई पद हासिल करना नहीं होना चाहिए। जीवन का एकमात्र लक्ष्य जनकल्याण होना चाहिए।” ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि वे शुरुआत से ही अपने पिता की इस बात को मानते हैं।

सिंधिया परिवार की मजबूरी ये है कि इस परिवार के लोग दावेदारी करते नहीं और राजनीति उन्हें शीर्ष तक जाने नहीं देती। माधव राव सिंधिया भी डॉक्टर मनमोहन सिंह की तरह देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते थे किंतु कांग्रेस ने उन्हें ये मौका नहीं दिया। ऐसा ही भाजपा ने राजमाता से किया। उन्हें हमेशा पूज्य बनाकर रखा। सत्ता के निकट फटकने तक नहीं दिया। यही छल कांग्रेस और भाजपा ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कर रही है। कहावत है कि -' शर्मीला मांगता नहीं है और गर्वीला देता नहीं है।' ज्योतिरादित्य सिंधिया को जनसेवा के लिए राजनीति को माध्यम बनाना है, सो उन्हें केंद्रीय मंत्री बना दिया। 

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बहरहाल, अब भी सवाल सिंधिया की सेल्फ रिस्पेक्ट का है। क्या वाकई में उन्हें भाजपा में नेता और कार्यकर्ता रिस्पेक्ट दे रहे हैं, या पीछे से टांग खिंचाई कर रहे हैं। क्या सिंधिया अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए ज़रूरत पड़ने पर फिर दल-बदल करेंगे? आने वाले विधानसभा चुनाव के बाद परिदृश्य साफ हो जाएगा। वैसे, रेखांकित करने वाली बात ये है कि अजमेर में उनकी बुआ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को भी महत्व नहीं दिया गया। 

सिंधिया भले ही कहते हैं कि वे किसी पद की दौड़ में शामिल नहीं हैं। उनका एकमात्र मकसद लोगों की सेवा करना है। उनकी सोच हमेशा यह होती है कि पार्टी ने उन्हें जो जिम्मेदारी दी है, उस पर खरे उतरें। लेकिन हकीकत ये है कि सब चाहते हैं कि सिंधिया एक बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें। लेकिन ये पद सेल्फ रिस्पेक्ट का सबसे बड़ा दुश्मन है।

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राकेश अचल
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