ओडिशा के बालासोर में भीषण रेल हादसे में अब तक 280 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है जबकि हजारों लोग घायल हैं। लेकिन इस भीषण हादसे के लिए दोषी कौन है ये शायद ही कभी पता चल सके।
भारत विकास दर के मामले में चीन को पछाड़ चुका है, आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ चुका है लेकिन चीन के बराबर न भारतीय रेल को सुरक्षित बना सका और न ही गति दे सका। भारत के लिए बुलेट ट्रेन कल भी सपना थी और आज भी सपना है।
देश में सुरक्षित रेल यात्रा उपलब्ध कराने के बजाय भारत की सरकार देश के विभिन्न राज्यों में डबल इंजन की सरकारें बनाने में जुटी हुई है, फलस्वरूप भारतीय रेल लगातार बेपटरी हो गई है। भारत में रेल मंत्री कौन है, क्या कर रहा है? ये कोई नहीं जानता, क्योंकि नयी रेलों को हरी झंडी दिखाने का मौलिक अधिकार भी प्रधानमंत्री जी ने अपने पास रख लिया है।
बालासोर में दो रेलें आपस में नही भिड़ीं बल्कि तीसरी रेल भी दो से भिड़ गई। जाहिर है कि ये कंप्यूटर की नहीं मानवीय भूल का दुष्परिणाम है, लेकिन जिम्मेदारी तय करने में जितना समय लगेगा उतने में पता नहीं कितनी और रेल दुर्घटनाएं हो चुकी होंगी। अच्छी बात ये है कि अघोषित रेल मंत्री की हैसियत से प्रधानमंत्री मोदी दुर्घटना स्थल पर पहुंचे और उन्होंने वही से ही फोन पर कैबिनेट सचिव और स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया से सीधे बात की। उन्होंने अधिकारियों से लोगों के अच्छे इलाज की व्यवस्था करने का निर्देश दिया।
भारत में रेल हादसों का लंबा इतिहास रहा है। अब तक की सबसे घातक रेल दुर्घटना बिहार में हुई थी, इसमें रेल दुर्घटना तक़रीबन 800 यात्री मारे गए थे। फिरोजाबाद रेल दुर्घटना 358 लोग मारे गए थे। ओडिशा में ही एक अन्य ट्रेन टक्कर 295 लोग मारे गए थे, गैसल ट्रेन दुर्घटना में 285 लोग हताहत हुए थे, खन्ना रेल आपदा में 212 और रफीगंज ट्रेन हादसे में 200 लोगों क जान गई थी। 1964 रामेश्वरम चक्रवात के कारण पंबन ब्रिज दुर्घटना में 150 लोग मारे गए थे। ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस ट्रेन पटरी से उतरने से 148 मारे गए थे।
भारत में रेल हादसों की नैतिक जिम्मेदारी अपवादों को छोड़कर कोई रेल मंत्री लेता नहीं। दुनिया की नजरों में लालू प्रसाद यादव अकेले ऐसे रेल मंत्री रहे जिनके कार्यकाल में भारतीय रेल मुनाफे का कारोबार बना था। भाजपा की मौजूदा सरकार ने तो रेल मंत्रालय को ही आभाहीन बना दिया। पहले रेल का अलग बजट बनाया और संसद में पेश किया जाता था, लेकिन अब यह सब बंद है। देश को रेल की सेहत का कुछ अता-पता नहीं है।
मुझे याद आता है कि रेलवे के लिए बजट 2023 में 2.4 लाख करोड़ का ऐलान किया गया था। सरकार का दावा है कि ये 2013-2014 के रेलवे बजट के मुकाबले नौ गुना ज्यादा है यानी कांग्रेस काल के मुकाबले रेलवे बजट अब तक नौ गुना बढ़ चुका है। हालांकि, रेलवे के लिए अलग से कोई खास घोषणाएं नहीं की गई हैं।
खास बात ये है कि, रेलवे के लिए अलग से कोई खास घोषणाएं नहीं की गई जिससे ये माना जा रहा है कि रेलवे अपनी पुरानी योजनाओं को ही पूरा करने पर जोर देगी । रेलवे बजट पर विशेषज्ञों का कहना था कि मोदी सरकार का जोर रेलवे इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने और हाई स्पीड ट्रेनों को हकीकत के और नजदीक पहुंचाने पर है।
रेल सेवा पिछले 9 साल में लगातार मंहगी हुई है । सुविधाएं बढ़ाने के साथ ही रियायतें छीनी गई। कोरोना काल की आड़ में ये सब हुआ लेकिन नतीजा ठनठन गोपाल ही है। देखा जाए तो सरकार रेलों, रेल स्टेशनों के नाम बदलने के जरिए अपने वोट बैंक को साधती रही। सरकार ने निजीकरण के नाम पर लूट को ही बढ़ावा दिया। ये आरोप नहीं, हकीकत है। जो रेल कल तक आम आदमी की रेल थी वो अब पहले जैसी नहीं रही।
जो लोग नहीं जानते उनके लिए ये जानकारी महत्वपूर्ण हो सकती है क्योंकि भारतीय रेल भारत सरकार-नियंत्रित सार्वजनिक रेलवे सेवा है। भारत में रेलवे की कुल लंबाई67415 किलोमीटर है। भारतीय रेलवे रोजाना 231 लाख यात्रियों और 33 लाख टन माल ढोती है। भारतीय रेलवे में 12147 लोकोमोटिव, 74003यात्री कोच और 289185 वैगन हैं और 8702 यात्री ट्रेनों के साथ प्रतिदिन कुल 13523 ट्रेनें चलती हैं। यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे सेवा है। 12.27 लाख कर्मचारियों के साथ, भारतीय रेलवे दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी व्यावसायिक इकाई है ।
राकेश अचल के फेसबुक से साभार
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