पत्रकारिता के एक ऐसे अंधकार भरे कालखंड जिसमें एक बड़ी संख्या में अख़बार मालिकों की किडनियाँ हुकूमतों द्वारा विज्ञापनों की एवज़ में निकाल लीं गईं हों ,कई सम्पादकों की रीढ़ की हड्डियाँ अपनी जगहों से खिसक चुकीं हों, अपने को उनका शिष्य या शागिर्द बताने का दम भरने वाले कई पत्रकार भयातुर होकर सत्ता की चाकरी के काम में जुट चुके हों, राजेन्द्र माथुर अगर आज हमारे बीच होते तो किस समाचार पत्र के सम्पादक होते, किसके लिए लिख रहे होते और कौन उन्हें छापने का साहस कर रहा होता ? भारतीय पत्रकारिता के इस यशस्वी सम्पादक-पत्रकार की आज (नौ अप्रैल) पुण्यतिथि है।