हमारी ही जमात के एक सीनियर और किसी जमाने में साथ भी काम कर चुके पत्रकार ने हाल ही में एक विवादास्पद माँग सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म ‘ट्विटर’ के ज़रिए हवा में उछाली है और उस पर बहस भी चल पड़ी है।
ऑक्सीजन की कमी के बीच ‘मीडिया’ का सत्ता संग ‘सहवास’!
- विचार
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- 29 Mar, 2025

अब जैसे किसी साधु, पादरी, मौलवी, ब्रह्मचारी अथवा राजनेता को किसी महिला या पुरुष के साथ बंद कमरे में पकड़ लिए जाने पर ज़्यादा आश्चर्य नहीं व्यक्त किया जाता या नैतिकता को लेकर कोई हाहाकार नहीं मचता, वैसे ही मीडिया और सत्ता प्रतिष्ठानों के बीच चलने वाले सहवास को भी नाजायज़ सम्बन्ध की पत्रकारिता के कलंक से मुक्त कर दिया गया है।
जिस समय महामारी से त्रस्त लोगों को ऑक्सीजन के ज़रिए कृत्रिम साँसें उपलब्ध कराने में नाकारा साबित हुई सरकार आरोपों से घिरी हुई है, मीडिया की बची-ख़ुशी प्राकृतिक साँसों पर भी ताले जड़ देने का सुझाव दुस्साहस का काम ही माना जाना चाहिए। दुस्साहस इस प्रकार का है कि मीडिया के अंधेरे कमरे में जो थोड़े-बहुत दीये टिमटिमा रहे हैं उनके मुँह भी बंद कर दिए जाएँ।