क्या आप बता सकते हैं कि दीपिका पादुकोण और सोनम कपूर में क्या कॉमन है? जी, दोनों फ़िल्म स्टार हैं, यह बात तो हर कोई जानता है लेकिन अहम बात यह है कि दोनों ने छात्र आंदोलन से जुड़ी फ़िल्मों में काम किया है और उससे भी खास बात यह कि दीपिका पादुकोण तो अपनी फ़िल्म “छपाक” के रिलीज होने के वक्त जेएनयू पहुंची थीं लेकिन सोनम कपूर की फ़िल्म “रांझणा” की कहानी में तो वह जेएनयू की स्टूडेंट ही होती हैं, हीरो अभय देओल के साथ। दीपिका ने प्रकाश झा की फ़िल्म “आरक्षण” में भी अहम किरदार निभाया था। ऐसी ही एक फ़िल्म आई थी आमिर ख़ान की “रंग दे बसंती”, जिसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र आज़ादी के वक्त के आंदोलनकारियों की भूमिका में थे और तख़्तापलट कर रहे थे।
छात्र आंदोलनों की ताक़त को कम न आंके मोदी सरकार
- विचार
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- 13 Jan, 2020

आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद ज़्यादातर बार सत्ता परिवर्तन में छात्र आंदोलनों की अहम भूमिका रही है। शायद ही कोई ऐसा बड़ा आंदोलन रहा होगा जो बिना छात्रों के कामयाब हुआ होगा। आंदोलन अहिंसक होने चाहिए लेकिन लगता है कि दिल्ली और कुछ दूसरे इलाक़ों में हाल में हुए आंदोलनों में छात्रों ने इस सावधानी को ध्यान में नहीं रखा, जिसकी वजह से कुछ लोगों ने उनसे दूर रहना ही बेहतर समझा तो कुछ लोगों ने आंदोलन को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
छात्र आंदोलनों और उससे जुड़ी फ़िल्मों का ज़िक्र यहां पर इसलिए किया गया है क्योंकि सिनेमा को समाज का आईना माना जाता है। यानी सोसायटी जिसे महत्वपूर्ण मानती है, हमारे फ़िल्म निर्माता उस पर ही काम करते हैं। छात्र आंदोलनों से जुड़ी बहुत सी फ़िल्में हैं लेकिन सवाल यह है कि जो बात बॉलीवुड के प्रोड्यूसर को समझ आती है क्या उसका अहसास हमारे पॉलिटिकल लीडर्स को नहीं होता। फ़िल्में ना भी देखी हों तो इतिहास तो सब जानते हैं कि आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद ज़्यादातर बार सत्ता परिवर्तन में छात्र आंदोलनों की भूमिका रही है। शायद ही कोई ऐसा बड़ा आंदोलन रहा होगा जो बिना छात्रों के कामयाब हुआ होगा।