सोशल मीडिया पर आजकल एक मैसेज बहुत चल रहा है साल 2019 के जाने और नए साल 2020 के आने का। मैसेज में लिखा है कि दोनों साल में सिर्फ़ 19-20 का फ़र्क है, ज़्यादा नहीं। आंकड़े के हिसाब से तो यह मैसेज ठीक है, लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि अगला साल 2019 से बेहतर हो। खासतौर से देश के सामाजिक और आर्थिक हालात को लेकर। अर्थशास्त्रियों की बात को सच मानें तो सरकार को कुछ ठोस और कड़े क़दम उठाने की ज़रूरत होगी ताकि माली हालत ठीक हो सके।
2019: बीजेपी को ताक़त मिली तो झटके भी लगे, कांग्रेस-विपक्षी दल उभरे
- विचार
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- 30 Dec, 2019

2019 में केंद्र में एक बार फिर बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार बनी तो कई राज्यों के चुनाव में उसे झटके भी लगे हैं। बीजेपी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जनता से किये गये वादों को पूरा करना बेहद ज़रूरी है। नरेंद्र मोदी के नाम पर पार्टी ने लोकसभा का चुनाव तो जीता है लेकिन आईसीयू में जा रही अर्थव्यवस्था को पार्टी को सुधारना होगा और बढ़ती बेरोज़गारी व अन्य ज़रूरी मुद्दों पर भी ठोस क़दम उठाने होंगे।
राजनीतिक तौर पर यूं तो यह साल बीजेपी, कांग्रेस और दूसरे दलों के लिए ठीक ही रहा है क्योंकि बीजेपी की लगातार दूसरी बार केन्द्र में स्पष्ट बहुमत वाली सरकार पूरी ताक़त के साथ बनी है।
लेकिन विधानसभा चुनावों में झारखंड और महाराष्ट्र में उसे अपनी सरकार गंवानी पड़ी है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इन दोनों राज्यों में बीजेपी को नुक़सान वोटर के कारण नहीं बल्कि बीजेपी नेताओं की रणनीति और अंहकार की वजह से उठाना पड़ा। कांग्रेस को भी राज्यों के बहाने ही सही पैर फैलाने का मौक़ा मिला है। इस साल उसे झारखंड में, महाराष्ट्र में सरकार में हिस्सेदारी मिली है और हरियाणा में भी उसने बेहतर प्रदर्शन किया है।