‘संपूर्ण क्रांति : सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ पाँच जून, 1974 को पटना के गाँधी मैदान में विशाल जन सैलाब के समक्ष जयप्रकाश नारायण ने जब यह नारा दिया तो किसी ने उम्मीद भी नहीं की होगी कि यह एक नए इतिहास की बुनियाद बनेगा। लेकिन कुछ ही दिनों बाद यह नारा चरितार्थ हुआ और दिल्ली के सिंहासन पर जनता पार्टी का शासन हो गया। लेकिन जो जेपी चाहते थे वह नहीं हुआ।
जेपी की ‘संपूर्ण क्रांति’ में शामिल रहे नेता आज किस ‘क्रांति’ में लीन हैं?
- विचार
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- 5 Jun, 2020

‘संपूर्ण क्रांति : सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ पाँच जून, 1974 को पटना के गाँधी मैदान में विशाल जन सैलाब के समक्ष जयप्रकाश नारायण ने जब यह नारा दिया।
दरअसल, जेपी सत्ता के विकेन्द्रीकरण के पक्षधर थे। और शायद वह पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने भारत में सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात सबसे पहले उठाई थी। जेपी ने 1950 के दशक में ‘राज्यव्यवस्था की पुनर्रचना’ नामक एक पुस्तक भी लिखी। कहा जाता है कि इसी पुस्तक को आधार बनाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ‘मेहता आयोग’ का गठन किया था, जिसने देश में सत्ता के विकेन्द्रीकरण का मार्ग प्रशस्त किया था। और जब देश में सत्ता के विकेन्द्रीकरण की सीमाएँ तेज़ी से ध्वस्त होने लगीं उन्होंने उन्हें बचाने के लिए संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूँका। लेकिन उनकी सम्पूर्ण क्रांति के रथ के पहिये सत्ता की दलदल में फँस गए और आगे का मार्ग अवरुद्ध हो गया। संपूर्ण क्रांति एक सपना ही रह गयी।