प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे कार्यकाल का पहला साल संपन्न हुआ। भारतीय जनता पार्टी की कोरोना काल में भी इस इस अवसर को प्रचारित और इसे समारोह के रूप में मनाने की विशिष्ट योजना है। देश के गृह मंत्री अमित शाह ने इसे कांग्रेस के ‘साठ साल पर मोदी के छह साल भारी’ कहकर पीठ थपथपाई है। मोदी सरकार के छह सालों का सफर देखें तो वह ‘अच्छे दिन के नारे से शुरू होकर आत्मनिर्भर बनने के नारे’ तक पहुँची है। इस सफर में नरेंद्र मोदी की सरकार की कामयाबी और विफलता दोनों का ही शुमार है। मोदी सरकार के दोनों नारे उनकी सरकार के आकलन के सबसे बेहतर पैमाने हो सकते हैं।
मोदी 2.0 का एक साल: ‘अच्छे दिन’ के बाद भी ‘आत्मनिर्भरता’ की ज़रूरत क्यों?
- विचार
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- 31 May, 2020

देश के गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के ‘साठ साल पर मोदी के छह साल भारी’ कहकर पीठ थपथपाई है। मोदी सरकार के छह सालों का सफर देखें तो वह ‘अच्छे दिन के नारे से शुरू होकर आत्मनिर्भर बनने के नारे’ तक पहुँची है।
अच्छे दिन की बात कहकर उन्होंने देश के करोड़ों ऐसे लोगों के मन में एक आशा जगाई थी कि आने वाला समय उनका है। यह वह वर्ग था जो विकास की दौड़ में पिछड़ा हुआ था या जिसे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला। ‘भ्रष्टाचार’ इस नारे को सफल बनाने में एक मूलमंत्र की तरह या यूँ कह लें ‘रामबाण औषधि’ की तरह कारगार साबित हुआ। मनमोहन सिंह की सरकार को जहाँ एक तरफ़ देश के औद्योगिक घराने ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ की अवधारणा पैदा कर घेरने का काम कर रहे थे वहीं दूसरी ओर आये दिन एक से बड़े एक भ्रष्टाचार के प्रकरणों के क़िस्से समाचार माध्यमों की सुर्खियाँ बन रहे थे। कालेधन की पृष्ठभूमि पर अच्छे दिन की ऐसी फ़सल लहलहाई कि देश की जनता ने क़रीब तीन दशक बाद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत प्रदान कर दिया।