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भारतीय रेल के समक्ष समस्याओं का अंबार

भारतीय रेल नेटवर्क विश्व के पाँच सबसे बड़े रेल नेटवर्क में चौथे नंबर पर गिना जाता है। अमेरिका, चीन और रूस के बाद भारतीय रेल नेटवर्क का स्थान है जबकि पाँचवें स्थान पर कनाडा रेल सिस्टम का है। इन देशों की ही तरह भारतीय रेल भी आधुनिकीकरण, विकास व बदलाव के मार्ग पर पर तेज़ रफ़्तार से दौड़ रही है। नई नई तीव्रगामी रेलगाड़ियाँ चलाई जा रही हैं। यहाँ तक कि सबसे तेज़ रफ़्तार समझी जाने वाली बुलेट ट्रेन (हाई स्पीड) रेल परियोजना पर भी काम चल रहा है।

भारतीय रेल पूरे देश के मीटर गेज नेटवर्क को ब्रॉडगेज में बदलने और ब्रॉड गेज नेटवर्क के शत प्रतिशत विद्युतीकरण के क्षेत्र में भी बहुत तेज़ी से काम कर रहा है। रेलवे मंत्रालय की मानें तो अब तक 82 प्रतिशत रेल मार्ग के विद्द्युतीकरण का काम पूरा भी हो गया है। निश्चित रूप से रेल के विद्युतीकृत होने से जहाँ पर्यावरण को लाभ होगा वहीं डीज़ल पर निर्भरता भी कम होगी। साथ ही रेल की शक्ति व गति में भी इज़ाफ़ा होगा। रेलवे लाइंस को फाटक रहित बनाने की दिशा में भी बहुत तेज़ी से काम हुआ है। देश भर में हज़ारों अंडरपास बनाये जा चुके हैं और बनाये जा रहे हैं। मुसाफ़िरों की बढ़ती संख्या के चलते ट्रेनों की बढ़ती लंबाई के मद्देनज़र सैकड़ों स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म की लंबाई बढ़ाई जा रही है। यात्री रेल नेटवर्क के अतिरिक्त DFCCIL यानी डेडिकेटेड फ़्रेट कॉरिडोर कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड हज़ारों करोड़ की लागत से मालगाड़ियों के लिए समर्पित एक रेल गलियारा निर्माण की महत्वाकांक्षी परियोजना पर भी तेज़ी से काम कर रहा है। हालाँकि गत दिनों भारतीय रेल ने ‘अनिवार्यता’ होने पर इस विशेष ट्रैक पर अपनी यात्री गाड़ियाँ यदि चलाने की अनुमति तो ज़रूर ले ली है लेकिन मुख्यतः इस पर केवल मालगाड़ियों का ही संचालन किया जाएगा।

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परन्तु जहाँ भारतीय रेल आधुनिकीकरण, विकास तथा विस्तार के क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है वहीं भारतीय रेल अनेक प्रकार की समस्याओं से भी जूझ रहा है। ट्रेन व यात्रियों की सुरक्षा रेल व्यवस्था से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है। इस समय देश में चार अलग-अलग मार्ग पर चार वंदे भारत ट्रेनें दौड़ रही हैं। 200 किलोमीटर प्रति घंटा दौड़ने की क्षमता रखने वाली वंदे भारत की अधिकतम गति सीमा 130 किमी प्रति घंटा निर्धारित की गयी है। 

रेलवे की योजना अनुसार अमृत महोत्सव वर्ष के दौरान शताब्दी से भी आधुनिक व तेज़ रफ़्तार समझी जाने वाली कुल 75 वंदे भारत ट्रेनें पूरे देश में विभिन्न रेल मार्गों पर चलाई जानी हैं। परन्तु पिछले दिनों मात्र सवा महीने के दौरान वंदे भारत ट्रेन चार हादसों का शिकार हुई। कहीं वंदे भारत गाय से टकराकर क्षतिग्रस्त हुई तो कहीं भैंस के झुण्ड से टकराई। कहीं इससे टकराकर किसी महिला की मौत हो गयी तो कहीं इसके पहिये जाम हो गए। इन दुर्घटनाओं ने जहां रेल ट्रैक की सुरक्षा पर सवाल खड़े किये वहीं वंदे भारत की तकनीकी त्रुटि भी सामने आई।

यहाँ यह जानना भी ज़रूरी है कि ये हादसे चूँकि नवचलित व तीव्र गामी (सेमी हाई स्पीड) ट्रेन वंदे भारत जैसी वीआईपी ट्रेन के साथ हुये इसलिये ख़बरों की सुर्ख़ियां बने और चर्चा में आये। जैसे राजधानी व शताब्दी ट्रेनों से जुड़ी कोई ख़बर सुर्ख़ियां बन जाया करती हैं। अन्यथा कोई दिन ऐसा नहीं होता जबकि दूसरी यात्री या मालगाड़ियों से टकराकर कोई न कोई पशु या इंसान अपनी जान न गंवाता हो। यह तो वैज्ञानिकों की दूर दृष्टि की तारीफ़ करनी पड़ेगी कि उन्होंने रेल इंजन की डिज़ाइन इतनी भारी भरकम तथा इसका बंपर इस प्रकार निर्मित किया है कि ट्रेन अपने सामने आने वाली किसी भी चीज़ को रौंदती या किनारे फेंकती हुई आगे बढ़ जाती है। यहाँ तक कि झारखंड, केरल, तमिलनाडु व असम आदि राज्यों से तो कई बार हाथी के भी ट्रेन से टकराकर मरने की ख़बरें आ चुकी हैं।
इन हादसों का एकमात्र कारण यही है कि देश का लगभग पूरा रेल मार्ग खुला रेल मार्ग है जिनपर पशुओं से लेकर इंसानों तक का आना जाना या इसे पार करना आसान हो जाता है।

इसी वजह से देश में कई बार अपराधियों व शरारती तत्वों द्वारा रेल लाइन पर तोड़ फोड़ की कार्रवाई भी की जाती रही है। अब शायद वन्दे भारत के हादसों के बाद रेल विभाग की नींद खुली है। तभी रेलवे ने ट्रेनों से पशुओं के टकराने की घटना को रोकने के लिये एक मास्टरप्लान तैयार किया है। ख़बरों के अनुसार रेल मंत्रालय ने एक विशेष प्रकार की बाउंड्री वॉल की नई डिज़ाइन को अनुमति दी है। नई बाउंड्री वाल अगले 5-6 महीनों में कुछ विशेष रेल मार्गों पर पटरियों के किनारे लगाई जाने का प्रस्ताव है। प्रारंभिक चरण में एक हज़ार किलोमीटर रेलवे ट्रैक्स पर दोनों तरफ़ से सुरक्षा दीवार बनाई जाएगी। जिन रेल मार्गों को बाउंड्री वाल के निर्माण हेतु चिन्हित किया गया है उनमें उत्तर मध्य रेलवे और उत्तर रेलवे के झांसी मंडल (वीरांगना लक्ष्मीबाई-ग्वालियर खंड), प्रयागराज मंडल (पंडित दीन दयाल उपाध्याय-प्रयागराज खंड), मुरादाबाद मंडल (आलम नगर से शाहजहाँपुर), और लखनऊ मंडल (आलम नगर से लखनऊ) शामिल हैं।

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ज़ाहिर है कि देश के लगभग 68,000 किलोमीटर के रेल रुट पर बिछी लगभग 1 लाख बीस हज़ार किलोमीटर रेल लाइन को चहारदीवारी से घेर पाना यदि असंभव नहीं तो मुश्किल काम ज़रूर है। परन्तु यदि भारतीय रेल तीव्रगामी और लंबी व सुरक्षित रेल यात्रा देने जा रही है तो रेल व इसके यात्रियों की चाक चौबंद सुरक्षा सुनिश्चित करना भी इसकी पहली ज़िम्मेदारी होनी चाहिये।

हमें चीन, अमेरिका और रूस जैसे देशों से यह भी सीखना चाहिये कि वहां ट्रेनें सुरक्षित कैसे चलती हैं। क्या हमारे देश की तरह इन देशों में भी आवारा व लावारिस जानवर इसी तरह सड़कों व रेल लाइनों के किनारे घूमते रहते हैं? क्या इन देशों के लोग भी हमारे देश के लोगों की तरह रेल ट्रैक पर शौच करते, रेल ट्रैक को लापरवाही से पार करते, रेल ट्रैक पर तोड़ फोड़ करते, मरे जानवर व दुनिया भर का कबाड़ रेल लाइनों पर फेंकते नज़र आते हैं? जो रेल देश की जीवन रेखा हो और रोज़ लाखों लोगों को उनकी मंज़िल तक लाती ले जाती हो उस रेल के प्रति जितनी 'बर्बरता' भारत में बरती जाती है उतनी कहीं नहीं बरती जाती।

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फाटक विहीन रेल मार्ग देने की दिशा में भी जो काम हो रहा है वह भी ज़्यादातर जगहों पर तमाशा साबित हो रहा है। देश के सैकड़ों रेल अंडर पास पानी से भर जाते हैं। इसमें डूबने से भी लोग मर चुके हैं। जबकि अंडर पास में जमा पानी को निकालने का भी डिज़ाइन किया जाता है। परन्तु बारिश में यह सब व्यवस्था फ़ेल हो जाती है। गत दिनों अंबाला शहर में तो स्थानीय विधायक ने केवल अपना जन्मदिन मनाने के चलते एक ऐसे अंडरपास का उद्घाटन कर दिया जो न तो उस समय खोले जाने लायक़ था न आज है। बिना बारिश के ज़मीन से निकल रहा पानी कीचड़ रोका नहीं जा पा रहा तो सोचा जा सकता है कि बारिश में इसका क्या हाल होगा।

भारतीय रेल के सुगम व सुरक्षित संचालन के लिये ये सभी समस्याएँ विकराल रूप धारण कर चुकी हैं। इनके अतिरिक्त भी तमाम समस्याएँ ऐसे हैं जिन्हें देखकर कहा जा सकता है कि बावजूद इसके कि भारतीय रेल विश्वस्तरीय रेल नेटवर्क की दिशा में आगे तो ज़रूर बढ़ रहा है परन्तु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारतीय रेल के समक्ष समस्याओं का भी अंबार है।

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तनवीर जाफ़री
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