मध्ययुगीन भारत के सर्व समाज के लोकप्रिय शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम को लेकर अक्सर कोई न कोई विवाद खड़ा करने की कोशिश की जाती रही है। शिवाजी के नाम का राजनैतिक लाभ तो सभी उठाना चाहते हैं लेकिन उनके शासन करने की शैली, उनकी उदारता, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सभी पर्दा भी डालना चाहते हैं। इसके बजाय शिवाजी महाराज के जीवन व उनके व्यक्तित्व को अपने-अपने राजनैतिक लाभ के मद्देनज़र अनेक नेता व राजनैतिक दल अपने ही तरीक़े से परिभाषित करने की कोशिश करते रहते हैं। शब्दों के हेर फेर से उनके वृहद मक़सद पर पर्दा डालकर कुछ संकीर्ण विचारों वाले संगठन व इनसे जुड़े नेता शिवाजी को भी अपने 'संकीर्ण' विचार के फ़्रेम में फ़िट करना चाहते हैं। परन्तु उपलब्ध दस्तावेज़ व इतिहास के स्वर्णिम पन्ने इन संकीर्ण सोच रखने वालों की इन कोशिशों पर हमेशा पानी फेर देते हैं। और तभी यह अतिवादी संकीर्ण लोग इतिहास बदलने की मुहिम चलाने लगते हैं और वास्तविक इतिहास को झुठलाने में लग जाते हैं।