मध्ययुगीन भारत के सर्व समाज के लोकप्रिय शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम को लेकर अक्सर कोई न कोई विवाद खड़ा करने की कोशिश की जाती रही है। शिवाजी के नाम का राजनैतिक लाभ तो सभी उठाना चाहते हैं लेकिन उनके शासन करने की शैली, उनकी उदारता, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सभी पर्दा भी डालना चाहते हैं। इसके बजाय शिवाजी महाराज के जीवन व उनके व्यक्तित्व को अपने-अपने राजनैतिक लाभ के मद्देनज़र अनेक नेता व राजनैतिक दल अपने ही तरीक़े से परिभाषित करने की कोशिश करते रहते हैं। शब्दों के हेर फेर से उनके वृहद मक़सद पर पर्दा डालकर कुछ संकीर्ण विचारों वाले संगठन व इनसे जुड़े नेता शिवाजी को भी अपने 'संकीर्ण' विचार के फ़्रेम में फ़िट करना चाहते हैं। परन्तु उपलब्ध दस्तावेज़ व इतिहास के स्वर्णिम पन्ने इन संकीर्ण सोच रखने वालों की इन कोशिशों पर हमेशा पानी फेर देते हैं। और तभी यह अतिवादी संकीर्ण लोग इतिहास बदलने की मुहिम चलाने लगते हैं और वास्तविक इतिहास को झुठलाने में लग जाते हैं।
तो इसलिये संकीर्ण लोगों को शिवाजी की उदारता नहीं भाती
- विचार
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- 24 Nov, 2022

शिवाजी महाराज पर महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बयान के क्या मायने हैं? आख़िर क्यों शिवाजी को 'पुराना आदर्श' कहा गया? जानिए शिवाजी के बारे में ऐसे कहने वाले लोग कौन।
शिवाजी के नाम पर छिड़ा ताज़ा विवाद महाराष्ट्र के राज्यपाल व आरएसएस के समर्पित प्रचारक रहे भगत सिंह कोश्यारी द्वारा दिये गये एक बयान को लेकर छिड़ा है जिसमें उन्होंने शिवाजी को 'पुराना आदर्श' और बाबासाहेब आम्बेडकर व केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को 'नया आदर्श' बताया। इतना ही नहीं, बल्कि भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कथित तौर पर यह भी कहा कि- शिवाजी ने मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब से पांच बार 'माफ़ी मांगी' थी।