भले ही “सखी सैयां तो खूबै कमात हैं, महंगाई डायन खाय जात है” के रचयिता को गूढ़ अर्थ-शास्त्र न मालूम हो लेकिन योजना भवन में बैठे बहुत से अर्थ-शास्त्रियों को भी “सैयां की कमाई के बावजूद गरीबी” का कारण पिछले 75 साल में समझ में नहीं आया। वरना वे यह भी जानते कि वर्ष 2022 में कृषि के सेक्टर्स में 10.05 लाख करोड़ रुपये के इनपुट में 50.71 लाख करोड़ के जीवीओ (कुल आउटपुट वैल्यू) मिला। यानी 20 प्रतिशत लागत में 80 प्रतिशत वैल्यू-एडेड जबकि मैन्युफैक्चरिंग में 122.93 लाख करोड़ रुपये के इंटरमीडियरी इनपुट लगा कर भी मात्र 156.90 लाख करोड़ रुपये का जीवीओ मिला। किसान का मुख्य इनपुट जमीन है और इसके साथ हर 100 रुपये के जीवीओ में बीज, खाद, पानी, दवा और हाड़तोड़ मेहनत पर 20 रुपये ख़र्च होता है।