एक तरफ मोदी सरकार का दावा है कि वह 81 करोड़ लोगों का पेट भर रही है और चुनाव जीत भी रही है। लेकिन, फिर भी हम भूख तालिका में क्यों नीचे की तरफ़ फिसलते जा रहे हैं? कुछ तो वज़ह होगी?
खेतिहर मजदूर की उत्पादकता एक रुपया है तो मैन्युफैक्चरिंग के श्रमिक की 3.5 रुपये और सेवा क्षेत्र के कर्मचारी की 4.7 रुपये। कमाल काम करने वाले का क्यों नहीं है?
केंद्र सरकार ने ग़रीबी घटने के बड़े दावे किए हैं, लेकिन क्या यह पता है कि यह कैसे हुआ? क्या ग़रीबी रेखा के बारे में जानकारी है? क्या पता है कि प्रतिदिन कितने ख़र्च को आधार बनाया गया है?
भारत में एक परसेंट अमीरोें के पास देश की कुल कमाई का बाईस परसेंट हिस्सा है, जबकि दस परसेंट लोगों के पास सत्तावन परसेंट। जबकि नीचे की आधी आबादी को मिलता है बस तेरह परसेंट। गैर बराबरी के पैमाने पर अंग्रेजीू राज के हाल में पहुंच गया है भारत। आखिर क्या है इसकी वजह, और क्या हो सकता है इसका असर?
आज़ादी के बाद से भारत कितना बदला? क्या ग़रीबी दूर हुई? क्या असमानता मिटी? ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ 2021 में भारत 101वें स्थान पर क्यों है? और दूसरे सूचकांक भी क्या दर्शाते हैं?
प्रियदर्शन लिखते हैं- जिस दो तरह के भारत की हम चर्चा कर रहे हैं, उनमें कई तरह के भारत हैं। लेकिन हर जगह यही नज़र आता है कि अमीर भारत पहले ग़रीब भारत की जेब काटता है और फिर उसके लिए खाना बांटता है।
वर्तमान कोरोना वायरस की समस्या कुछ समय बाद ख़त्म हो जाएगी और फिर आर्थिक समस्याएँ अधिक उग्र रूप में हमारे उपमहाद्वीप में उत्पन्न होंगी। केवल वैज्ञानिक मानसिकता के बुद्धिजीवी ही इन्हें हल कर सकते हैं लेकिन वर्तमान में इसका बड़ा अभाव है।