भारत के मुख्य न्यायाधीश यानी सीजेआई ने सार्वजानिक मंचों से और सुप्रीम कोर्ट की अनेक बेंचों ने अपने हालिया फ़ैसलों के ज़रिये एक बार फिर निचली अदालतों को जमानत देने में उदार रवैया अपनाने को कहा है। उनके अनुसार ट्रायल कोर्ट का अहम् मामलों में जमानत देने से बचने का बढ़ता रवैया इसलिए है कि वे जोखिम से बचना चाहते है। यहाँ प्रश्न यह है कि निचली अदालतों के जज बचना क्यों चाहते हैं यानी उन्हें किस चीज का डर है?
पुलिस को निरंकुश शक्ति क्यों? सरकारों का यह नया शौक!
- विचार
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- 18 Aug, 2024

जब मामला ट्रायल में आया ही नहीं यानी केस के तथ्य सामने हैं ही नहीं और आरोपी का पक्ष पूर्णतः जाना ही नहीं गया तो जज कैसे सुनिश्चित करेगा कि प्रथम दृष्टया वह निर्दोष लगता है। फिर जज के पास कौन सी दिव्यदृष्टि है जिससे वह यह गारंटी लेगा कि आरोपी जमानत मिलने के बाद कोई अपराध नहीं करेगा।
यह सच है कि जमानत न देने वाले जज पर कोई आरोप नहीं लगा सकता। लेकिन क्या ऊपरी अदालतें जमानत से इनकार करने वाले ट्रायल कोर्ट से स्पष्टीकरण नहीं मांग सकतीं? आखिर एक नागरिक की संविधान-प्रदत्त सबसे बड़ी स्वतंत्रता –व्यक्तिगत आजादी-- का सवाल है। साथ ही जेल में डाले गए व्यक्ति के परिवार के भूखों मरने की स्थिति बन जाती है। पर शायद सीजेआई का समस्या की तह तक जाना संभव नहीं है क्योंकि मूल सवाल राज्य की संवेदनशीलता का है। आखिर पुलिस को ऐसी निरंकुश शक्ति दी ही क्यों गयी है?