जब देश आज़ादी की वर्षगाँठ मना रहा हो तो नेहरू की एक बात हर भारतीय को याद रखनी चाहिये । अमेरिकी पत्रकार नार्मल कजिंस ने नेहरू से पूछा था, “आपकी विरासत क्या होगी।” नेहरू ने कहा, “भारत को मेरी विरासत ? उम्मीद करता हूँ कि देश के 40 करोड़ लोग खुद पर शासन करने योग्य हो जायेंगे ।” ये बात जगज़ाहिर है कि नेहरू के जीवित रहते ही ये बहस शुरू हो गई थी कि नेहरू के बाद कौन ? एक तरह से नेहरू ने कजिंस को बता दिया था कि संवैधानिक व्यवस्था में व्यक्तिवाद की जगह नहीं होनी चाहिये । देश में संस्थाएँ मज़बूत होनी चाहिये । क्योंकि व्यक्ति तो आता जाता रहता है । प्रधानमंत्री आते और चले जाते हैं । दलों की हार जीत लगी रहती है । कोई भी दल या नेता या प्रधानमंत्री ये नहीं कह सकता कि वो अमर है, और हमेशा रहेगा । ऐसे में अगर संस्थाएँ मज़बूत रहें तो फिर ये चिंता नहीं होगी कि व्यक्ति नहीं रहा तो देश का क्या होगा । दुर्भाग्य से आज मुल्क में संस्थाओं की जगह व्यक्ति और करिश्मे की जय जय कार की जा रही है और संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है ।

देश आज जिस रास्ते पर जा रहा है, उसमें व्यक्तिवाद हावी होता जा रहा है। हमें गांधी-नेहरू की विरासत से जो मजबूत लोकतंत्र मिला है, उसको मिटाने की पूरी कोशिश हो रही है। सवाल यही है कि आज देश और उसकी संवैधानिक संस्थाओं से बड़ा कोई व्यक्ति कैसे हो सकता है लेकिन जब तख्तनशीनों में तानाशाह की प्रवृत्ति हो तो क्या किया जा सकता है। आशुतोष का कहना है कि भारत की जनता ने ऐसे तानाशाहों को कभी पसंद नहीं किया है और वक्त आने पर वो उन्हें उखाड़ फेंकती है।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।