सरदार वल्लभ भाई पटेल देश के ऐसे नेता रहे हैं, जिन्हें हिंदूवादी कहा गया। गाँधी का भक्त कहा गया। राजा-रजवाड़ों का पिट्ठू कहा गया। पूंजीपतियों का आदमी कहा गया। सबने अपनी-अपनी सुविधा के मुताबिक़ उनकी व्याख्याएं की। लेकिन उस दौरान हिंदू महासभा एकमात्र ऐसी संस्था थी, जिसके नेता सरदार पटेल को जिंदा नहीं देखना चाहते थे।
सरदार पटेल को फांसी पर लटकाना चाहते थे हिंदू महासभा के लोग!
- विचार
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- 18 Feb, 2020

गाँधी जी की हत्या के महज कुछ दिन पहले हिंदू महासभा के एक नेता ने बिहार में एक जनसभा में कहा कि पटेल, नेहरू और आज़ाद को फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए।
सरदार अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे। 1947 के आसपास मुसलिम प्रतिनिधि जब गाँधी से मुलाक़ात करने आते थे तो वह पटेल की शिकायत करते थे। वह गाँधी से कहते थे कि सरदार हिंदुओं का पक्ष ले रहे हैं। गाँधी सिर्फ मंद-मंद हंसते और आश्वस्त करते कि मेरा सरदार ऐसा नहीं है। आख़िर में 15 जनवरी, 1948 को मृत्यु से 15 दिन पहले गाँधी ने अपनी प्रार्थना सभा में पटेल को लेकर अपने विचार रखे, जब माना जा रहा था कि नेहरू और पटेल में मतभेद चरम पर हैं, गाँधी ने कहा...
“कई मुसलमान दोस्तों ने शिकायत की थी कि सरदार का रुख मुसलमानों के ख़िलाफ़ है। मैंने कुछ दुख से उनकी बात सुनी, मगर कोई सफाई पेश नहीं की। उपवास शुरू होने के बाद मैंने अपने ऊपर जो रोकथाम लगा रखी थी, वह चली गई। इसलिए मैंने टीकाकारों को कहा कि सरदार को मुझसे और पंडित नेहरू से अलग करके और मुझे व पंडित नेहरू को खामख्वाह आसमान पर चढ़ाकर वे गलती कर रहे हैं। इससे उनको फायदा नहीं पहुंच सकता। सरदार के बात करने के ढंग में एक तरह का अक्खड़पन है, जिससे कभी-कभी लोगों का दिल दुख जाता है। सरदार का इरादा किसी को दुखी बनाने का नहीं होता है। उनका दिल बहुत बड़ा है। उसमें सबके लिए जगह है। मैंने जो कहा, उसका मतलब यह था कि अपने जीवन भर के वफादार साथी को एक बेजा इलजाम से बरी कर दूं। मुझे यह भी डर था कि सुनने वाले कहीं यह न समझ बैठें कि मैं सरदार को अपना जी-हुजूर मानता हूं। सरदार को प्रेम से मेरा जी-हुजूर कहा जाता था, इसलिए मैंने सरदार की तारीफ करते समय कह दिया कि वे इतने शक्तिशाली और मन के मजबूत हैं कि वे किसी के जी-हुजूर हो ही नहीं सकते। जब वे मेरे जी-हुजूर कहलाते थे, तब वे ऐसा कहने देते थे, क्योंकि जो कुछ मैं कहता था, वह अपने आप उनके गले उतर जाता था।” ( दिल्ली डायरी, नवजीवन प्रकाशन अहमदाबाद, मई 1948, पेज 359-60)।