लाल टीका लगाये और लाल स्वेटर पहने आम आदमी पार्टी (आप) के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के रामलीला मैदान में जब तीसरी बार शपथ ग्रहण के भाषण की शुरुआत की तो तमाम लोगों को इससे बड़ी उम्मीदें थीं। दिल्ली में 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और 'आप' के बीच हुई जंग में केजरीवाल विजेता बनकर उभरे हैं। ऐसे में उनके भाषण से उम्मीदें होना स्वाभाविक थीं। लेकिन उनका भाषण कम से कम उन लोगों को निराश करने वाला है, जो उन्हें नरेंद्र मोदी और बीजेपी की सांप्रदायिक, विभाजनकारी राजनीति के बरक्स विकल्प के रूप में देखते हैं और ऐसा मान लेने की कई वजहें हैं।
सीएए, आरक्षण, छात्रों पर लाठीचार्ज जैसे मसलों पर क्यों चुप रहे केजरीवाल?
- विचार
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- 17 Feb, 2020

केजरीवाल से लोगों को उम्मीद थी कि वह आरक्षण, नागरिकता क़ानून, जामिया, जेएनयू के छात्रों पर लाठीचार्ज जैसे मसलों पर बोलेंगे लेकिन उन्होंने इनमें से किसी भी मसले पर बात नहीं की।
हिंदुत्व व हिंदू ध्रुवीकरण के नारे
“भारत माता की जय”, “वंदे मातरम”, “इंकलाब जिंदाबाद” के नारों के साथ भाषण शुरू करने वाले केजरीवाल ने उन मसलों को क़तई नहीं उठाया, जिन्हें लेकर आम लोग सरकार के ख़िलाफ़ कथित रूप से आंदोलित हैं। केजरीवाल के भाषण में विकास के सपने उसी तरह दिखाए जाते रहे, जैसे नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले दिखाए थे। सबसे दिलचस्प अंश तब सामने आया, जब पूरे विपक्ष में किसी नेता का नाम न लेते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में न आ पाने को लेकर दुख जताया।