दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी यानी आप ने क़रीब-क़रीब 2015 का अपना प्रदर्शन दोहराया है। वहीं बीजेपी के प्रदर्शन में भी सुधार हुआ है और पार्टी का न सिर्फ़ मत प्रतिशत बढ़ा है, बल्कि पिछले चुनाव की तुलना में ज़्यादा सीटें भी मिली हैं। बीजेपी की धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले भले ही दिल्ली के चुनाव परिणाम से अति उत्साहित हों, लेकिन परिणाम भारतीय राजनीति में ख़तरे की घंटी है।
दिल्ली के चुनाव में राम भक्तों पर कैसे भारी पड़े हनुमान भक्त केजरीवाल?
- विचार
- |
- |
- 13 Feb, 2020

बीजेपी की धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले भले ही दिल्ली के चुनाव परिणाम से अति उत्साहित हों, लेकिन परिणाम भारतीय राजनीति में ख़तरे की घंटी है।
ऐसा कहा जा रहा है कि दिल्ली में विकास की राजनीति जीती है। मुफ़्त बस सेवा, मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी, मोहल्ला क्लीनिक, बेहतर स्कूल मुहैया कराने की राज्य के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की रणनीति काम आई है। संभव है कि इसका थोड़ा बहुत असर पड़ा हो। इस तरह के मुफ़्त का वादा सिर्फ़ आप ने नहीं बल्कि कांग्रेस और बीजेपी ने भी किया था। कांग्रेस के शासनकाल में भी स्कूल में पढ़ने वाली बच्चियों को मानदेय, उनके जन्म के समय खाते में पैसे डालने जैसी योजनाएँ चलती रही हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने तो पीएम-किसान से लेकर मुफ़्त गैस कनेक्शन, मुफ़्त बिजली कनेक्शन देने जैसे तमाम क़दम उठाए हैं। साथ ही बीजेपी ने विधानसभा में जीत के बाद भी छूटों की बौछार करने के वादे किए थे। ऐसे में यह मान लेना कि आप की मुफ़्त बिजली-पानी की रणनीति उसे चुनाव जिताने में कामयाब रही है, यह सिर्फ़ एक बयानबाज़ी है।