उत्तराखंड सरकार द्वारा राज्य की सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिए बग़ैर सभी पद भरने के 5 सितंबर, 2012 के फ़ैसले को बरकरार रखने के उच्चतम न्यायालय के आदेश पर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं। शीर्ष न्यायालय का यह फ़ैसला और फ़ैसले से इतर भी दी गई नजीरें प्राकृतिक न्याय के ही ख़िलाफ़ नहीं लग रही हैं, बल्कि संविधान की भावनाओं के भी विपरीत नजर आती हैं। सामान्यतया विधानसभा और संसद यह फ़ैसला करती हैं कि किसे आरक्षण देना है और किसे नहीं। उच्चतम न्यायालय का फ़ैसला यह कहता दिख रहा है कि विधानसभा या संसद कुछ भी कहें, सरकार को ही अंतिम फ़ैसला करना है कि उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है।
प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के ख़िलाफ़ है एससी-एसटी आरक्षण पर कोर्ट का फ़ैसला
- विचार
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- 10 Feb, 2020

उच्चतम न्यायालय का फ़ैसला यह कहता दिख रहा है कि विधानसभा या संसद कुछ भी कहें, सरकार को ही अंतिम फ़ैसला करना है कि उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है।