आखिर साल बीतने ही वाला है। मुश्किल से। डर, चिंता, नाराज़गी, अनदेखी, धर्म के नाम पर बढ़ता राजनीतिक कारोबार और बंटता हुआ समाज। ऐसा नहीं है कि नया साल आएगा तो सब कुछ यकायक बदल जाएगा या फिर अब हम सवेरे सवेरे स्नान कर नई आत्मा और शरीर के साथ मन, कर्म और वचन से ज़्यादा बेहतर हो जाएंगे लेकिन उम्मीद करने में तो कोई बुराई नही है और ना ही ऐसा करने की कोशिश से कोई गड़बड़ी होगी।