राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का गुरू दक्षिणा कार्यक्रम इस साल 23 जुलाई से शुरू होगा, इसमें लाखों स्वयंसेवक और आरएसएस के समर्थक हिस्सा लेंगे। संघ शायद अकेला समाजसेवी संगठन होगा जो आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर है और किसी दूसरे से चंदा नहीं लेता। संघ से जुड़े लोग भी साल में केवल एक बार अपनी तरफ से दक्षिणा देते हैं, जिसे गुरु दक्षिणा कहा जाता है।
आरएसएस में गुरू दक्षिणा परंपरा क्यों?
- विचार
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- 23 Jul, 2021

संघ को मिलने वाले पैसे और खर्च का हर साल ऑडिट होता है और पूरी राशि बैंकों में जमा होती है, लेकिन यह भी तथ्य है कि संघ रजिस्टर्ड संस्था नहीं है, इसलिए उसके नाम से कोई बैंक खाता नहीं बनाया जाता। कई बार संघ के आलोचक संघ के पैसे और कामकाज को लेकर पारदर्शिता रखने पर ज़ोर देते हैं।
हिंदू कैंलेडर के हिसाब से व्यास पूर्णिमा से रक्षाबंधन तक यानी एक महीने तक गुरू दक्षिणा का कार्यक्रम चलता है। इस दौरान स्वयंसेवक संघ में गुरू माने जाने वाले भगवा ध्वज के सामने यह समर्पण राशि रखते हैं। इसे गुप्त रखा जाता है यानी दक्षिणा की राशि और देने वाले का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता, लेकिन हर एक पैसे का पूरा हिसाब रखा जाता है।
गुरू पूजा का कार्यक्रम
इस साल यह कार्यक्रम 23 जुलाई से 22 अगस्त तक चलेगा। संघ की स्थापना तो साल 1925 में हुई लेकिन साल 1928 में गुरू पूजा का कार्यक्रम शुरू हुआ और तब से अनवरत चल रहा है। पहली बार हुई गुरू दक्षिणा में तो कुल 84 रुपये और पचास पैसे जमा हुए थे, लेकिन अब यह रकम कई सौ करोड़ से ऊपर हो गई है।