गलवान घाटी में भारत की मुठभेड़ चीन से हुई, लेकिन देखिए कि आजकल दंगल किनके बीच हो रहा है। यह दंगल हो रहा है बीजेपी और कांग्रेस के बीच। दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे पर इतने जमकर हमले किए जितने भारतीय और चीनी नेताओं ने भी एक-दूसरे पर नहीं किए।
बीजेपी पर आरोप
कांग्रेसी नेताओं ने प्रधानमंत्री का नया नामकरण कर दिया और चीन के आगे घुटने टेकने का आरोप यह कहकर भी जड़ दिया कि ‘पीएम केयर्स फंड’ में बीजेपी ने चीनी कंपनी ह्वाबे से 7 करोड़ रुपए का दान ले लिया है। इस पर बीजेपी और नरेंद्र मोदी सरकार का भड़कना स्वाभाविक था।
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सरकार ने अब सोनिया-परिवार के तीन ट्रस्टों पर जाँच बिठा दी है और उन पर यह आरोप भी लगाया है कि उन्होंने चीनी सरकार और चीनी दूतावास से करोड़ों रुपए स्वीकार किए हैं।
कांग्रेसी नेता बीजेपी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि वह चीन से तो पिट ली, लेकिन कांग्रेस पर फिज़ूल ग़ुर्रा रही है।
पीएम केअर्स फ़ंड
सवाल सिर्फ इतना ही नहीं है कि इन राजनीतिक संगठनों में पैसा कहाँ-कहाँ से आया है बल्कि यह भी है कि उस पैसे को क्या विदेशी बैंकों में भी छिपाया गया है और क्या पारमार्थिक दान का दुरुपयोग भी किया गया है?दरअसल, राजनीतिक पार्टियों और नेताओं से जुड़े इन सभी ट्रस्टों पर कड़ी निगरानी हर सरकार को रखनी चाहिए। लेकिन असली समस्या यह है कि बिना भ्रष्टाचार किए राजनीति चल ही नहीं सकती। राजनीति के हम्माम में सब नंगे हैं।
ट्रस्ट पर भरोसा नहीं
इन ट्रस्टों का काम निरंकुश चलता रहे, इसीलिए इनमें अपने पारिवारिक सदस्यों और जी-हुजूरियों को भर लिया जाता है। यह क़ानूनन अनिवार्य किया जाना चाहिए कि इन ट्रस्टों की आमदनी और खर्च का संपूर्ण विवरण हर साल सार्वजनिक किया जाए और किसी भी ट्रस्ट में एक परिवार का एक ही आदमी रखा जाए।यह भी विचारणीय विषय है कि दान देनेवाले की पात्रता देखी जाए या नहीं? कोई अपराधी, कोई मतलबी, कोई विरोधी या कोई अनैतिक व्यक्ति आपके ट्रस्ट में दान दे रहा हो तो उससे लेना या नहीं लेना है, यह भी बड़ी समस्या है।
ऐसे व्यक्तियों से दान स्वीकार करने की पात्रता उसी में हो सकती है, जिसके सीने में महर्षि दयानंद सरस्वती का दिल धड़कता हो, जिन्होंने अपने आश्रयदाता जोधपुर नरेश को डाँट लगाते हुए कहा था 'तुम अपने आपको सिंह कहते हो और वेश्या..... की पालकी में कंधा लगाते हो?'
उसी वेश्या नन्हीं जान ने उनके रसोइए जगन्नाथ को पटाकर उससे दयानंदजी के खाने में जहर मिलवा दिया था। क्या किसी नेता में इतना दम है?
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)
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