फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की 14 जून 2020 को संदिग्ध परिस्थितियों में हुई अफ़सोसजनक मौत के बाद एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने, एक-दूसरे को लांछित करने, मीडिया द्वारा इस मुद्दे पर 'नागिन डांस' करते हुए ख़ुद को 'मुंसिफ़' के रूप में पेश करने और इस विषय को झूठ-सच के घालमेल से अनावश्यक रूप से लंबे समय तक खींचने का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलेगा। सुशांत की मौत 'हत्या नहीं बल्कि आत्महत्या थी', जाँच एजेंसियों के इस निष्कर्ष पर पहुँचने के बाद इसी विषय से जुड़ी इससे भी बड़ी बहस इस बात को लेकर छिड़ी कि क्या फ़िल्म जगत, ड्रग एडिक्ट्स या नशेड़ियों का अड्डा है?
नशे पर एक नीति ही नहीं तो ड्रग्स कैसे नियंत्रित होगा?
- विचार
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- 20 Oct, 2020

शराब की ही तरह गांजा, भांग, अफ़ीम, चरस जैसे नशे की सामग्रियाँ पर एक जैसी नीति नहीं है। कई राज्यों में अफ़ीम का उत्पादन वैध है तो कई राज्यों में भांग व अफ़ीम के ठेके हैं। क्या इससे ड्रग्स नियंत्रित हो पाएगा?
इस विषय पर होने वाली चीख़-चिल्लाहट केवल मीडिया पर टीआरपी रेस के लिए होने वाली चटकारेदार बहस तक ही सीमित नहीं रही बल्कि यह विषय संसद में भी गूंजता सुनाई दिया। इसका कारण यह था कि अभिनेत्री कंगना रनौत ने अपने एक इंटरव्यू में फ़िल्मी पार्टियों में ड्रग्स के कथित इस्तेमाल को लेकर फ़िल्म उद्योग की तुलना 'गटर' से कर डाली थी। कंगना ने अपने एक इंटरव्यू में 99 प्रतिशत बॉलीवुड स्टार्स के ड्रग्स सेवन में शामिल होने का दावा किया था।