पाकिस्तान के महानगर कराची में गत 11-12 सितंबर को सुन्नी (अहल-ए-सुन्नत) मुसलमानों के विभिन्न संगठनों ने वहां के शिया समुदाय को लक्ष्य बनाते हुए सामूहिक रूप से एक विशाल प्रदर्शन किया। इसमें कई वक्ता जिनमें अधिकांशतः मौलवी, मुफ़्ती, हाफ़िज़ व क़ारी आदि थे, लाखों की भीड़ को देखकर उत्साहित थे।
क्या कठमुल्लाओं की साज़िश का शिकार है इसलामी जगत?
- विचार
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- 19 Sep, 2020

भारत सहित कुछ अरब देशों में भी सुन्नी-शिया की नमाज़ एक साथ व एक-दूसरे वर्ग के इमामों के पीछे पढ़ने की शुरुआत भी की गयी। परन्तु जैसा कि पूरे विश्व में देखा जा सकता है कि उदारवाद की मुहिम धीमी रफ़्तार पकड़ती है जबकि फ़ितना, फ़साद या फ़ासला पैदा करने की मुहिम तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ती है। इसी वातावरण ने पाकिस्तान के 20 प्रतिशत शिया समाज के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।
ये पूरी दुनिया को मुसलमानों की ताक़त दिखाते हुए 'ललकार' रहे थे, ठीक उसी दिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर दुनिया को बताया, 'आज एक और ऐतिहासिक सफलता! हमारे दो महान दोस्त इज़रायल और बहरीन साम्राज्य एक शांति समझौते के लिए सहमत हैं। 30 दिनों में इज़रायल के साथ शांति बनाने वाला दूसरा अरब देश!'
राष्ट्रपति ट्रंप बताना चाह रहे थे कि जिस तरह गत माह संयुक्त अमीरात अर्थात यूएई, इज़रायल के साथ अपने संबंध सामान्य करने पर राज़ी हो गया था उसी तरह अब बहरीन साम्राज्य ने भी शांति समझौता कर इज़रायल से अपने मधुर रिश्ते बना लिए हैं।