आज 1 जून से लॉकडाउन ख़त्म होने की उलटी गिनती शुरू हो रही है। सरकार ने इसे अनलॉक-1 का नाम दिया है जो 30 जून तक चलेगा। इस दौरान कनटेनमेंट ज़ोन यानी वे इलाक़े जहाँ पिछले 28 दिनों में कोविड-19 का एक भी मरीज़ मिला था और जहाँ अब भी बीमारी फैलने की आशंका है, उन इलाक़ों को छोड़कर बाक़ी सारे देश में लोगों को बिना पास या परमिशन के कहीं भी आने-जाने की छूट मिल गई है। कुछ बंदिशें अब भी रहेंगी लेकिन मोटे तौर पर अब हम अपने घरों में क़ैद रहने के लिए बाध्य नहीं हैं।
अनलॉक-1 : क्या सरकार ने कोरोना से हार मान ली है?
- विचार
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- 2 Jun, 2020

देश में जिस तेज़ी से मामले बढ़ रहे हैं, और अब जिस तरह से लोगों को घरों से निकलने की छूट मिल रही है, उससे कोरोना वायरस के नए मरीज़ों की संख्या में और तेज़ी आएगी और उसी हिसाब से गंभीर मरीज़ों की संख्या भी बढ़ेगी। इसी आशंका के बीच अब जब क़रीब हर रोज़ रिकॉर्ड पॉजिटिव मामले आ रहे हैं तो अनलॉक-1 की घोषणा क्यों की गई?
घरों से निकलने की छूट मिलना एक ख़ुशख़बरी होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं कि हर आदमी इस ख़बर से ख़ुश है। अब भी ऐसे लाखों लोग हैं जिनको लगता है कि यह छूट ख़तरनाक हो सकती है, ख़ासकर तब जबकि हर रोज़ कोविड-19 के हज़ारों नए मरीज़ मिल रहे हैं। अगर ताज़ा आँकड़ा देखें तो कल ही क़रीब 9 हज़ार नए मरीज़ों की शिनाख़्त हुई जिनको मिलाकर देश में कोरोना के कुल मामले 1.90 लाख के आसपास पहुँच गए। ऐसे में अगर सरकार ने लोगों को बाहर निकलने की पूरी छूट दे दी तो क्या इससे कोरोना पीड़ितों की संख्या और तेज़ी से नहीं बढ़ेगी? क्या सरकार आने वाले दिनों में इतनी बड़ी संख्या में कोरोना मरीज़ों को सँभाल पाएगी, उनका इलाज करवा पाएगी? अगर नहीं तो क्यों वह लोगों को बेखटके निकलने की छूट दे रही है? क्या यह सच है जैसा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि उद्योग जगत के दबाव में उसने कोरोना मरीज़ों को उनके हाल पर छोड़ देने का फ़ैसला कर लिया है?
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश