अब यह समझना तो मुश्किल है कि सरकार आँकड़ों से क्यों डरती है और उसने जनगणना से लेकर तरह तरह के आधिकारिक आंकड़ों के संग्रह और प्रकाशन का काम रोका है या बड़े बेमन से करा रही है। लेकिन उसे भी अपनी बात कहने के लिए या अपनी उपलब्धियां गिनवाकर वोट मांगने के लिए आंकड़ों का सहारा लेना होता है। लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि आज की सूचना क्रांति के युग में सूचनाओं की आवाजाही इतनी ज्यादा और तेज है कि बदलाव की तस्वीर को समझना/जानना मुश्किल नहीं है और बाजार सर्वेक्षण के तरीके ऐसे हो गए हैं कि रैंडम सैंपलिंग के एक छोटे से आँकड़े से पूरे देश की तस्वीर लगभग सही सही बता देनी संभव है।