अब यह समझना तो मुश्किल है कि सरकार आँकड़ों से क्यों डरती है और उसने जनगणना से लेकर तरह तरह के आधिकारिक आंकड़ों के संग्रह और प्रकाशन का काम रोका है या बड़े बेमन से करा रही है। लेकिन उसे भी अपनी बात कहने के लिए या अपनी उपलब्धियां गिनवाकर वोट मांगने के लिए आंकड़ों का सहारा लेना होता है। लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि आज की सूचना क्रांति के युग में सूचनाओं की आवाजाही इतनी ज्यादा और तेज है कि बदलाव की तस्वीर को समझना/जानना मुश्किल नहीं है और बाजार सर्वेक्षण के तरीके ऐसे हो गए हैं कि रैंडम सैंपलिंग के एक छोटे से आँकड़े से पूरे देश की तस्वीर लगभग सही सही बता देनी संभव है।
लड़की शिक्षा: क्या देश में गुलाबी क्रांति की शुरुआत है?
- विचार
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- 20 Feb, 2024

एक सर्वे के अनुसार देश में पहली बार सात अंडर-ग्रेजुएट कोर्स में से पाँच में लड़कियों का अनुपात लड़कों से ऊपर हो गया है। इसका क्या संकेत है?
नामी स्वयंसेवी संस्था ‘प्रथम’ की हर साल पर आने वाली शिक्षा संबंधी रिपोर्ट ‘असर’ अपने ईमानदार आंकड़ों और उससे भी ज्यादा शिक्षा की हमारी बदरूप तस्वीर के चलते चर्चित रहती है तो खुद सरकार के आँकड़े भी काफी कुछ कहते हैं। हाल में आई ऐसी दो रिपोर्टों के आधार पर हमारे देश की मध्य-वय शिक्षा व्यवस्था की जो तस्वीर उभरती है उसमें निराशा के बिंदु हैं पर आशा के आधार भी हैं, हल्के बदलाव से काफी सार्थक नतीजे निकालने की गुंजाइश दिखती है।