इस लेखक की दृष्टि से नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या नहीं की थी। दोनों के बीच व्यक्तिगत दुश्मनी जैसे रिश्ते नहीं थे, और न ही कोई सम्पति विवाद था। फिर भी गोडसे ने आज़ से 77 वर्ष पहले मोहनदास करमचंद गांधी उर्फ़ बापू पर तीन गोलियां चला कर उनकी दैहिक भूमिका का पटाक्षेप कर दिया था। आख़िर क्यों? इस सवाल ने आज़ विकराल आकार ले लिया है।
क्या अहिंसा की रक्षा के लिए गांधी की हत्या होती रहेगी?
- विचार
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- रामशरण जोशी
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- 30 Jan, 2025

रामशरण जोशी
महात्मा गांधी के इस देश में आज आख़िर हिंसा की ऐसी घटनाएँ कैसे देखने को मिल रही हैं? गांधी के आदर्शों को नज़रअंदाज़ करके ऐसा कैसे होते रहने दिया जा रहा है? पढ़िए, रामशरण जोशी महात्मा गांधी को उनके 77वें शहादत दिवस पर कैसे याद करते हैं।
कुछ रोज़ पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरकार्यवाह (2009- 2021) सुरेश “भैयाजी” जोशी की अहिंसा और हिंसा पर विवादास्पद टिप्पणी ने ‘आख़िर क्यों?’ सवाल को एक बार फिर से ज्वलंत बना दिया है। माननीय जोशी जी के मत में ‘अहिंसा की रक्षा व स्थापना’ के लिए कभी कभी ‘हिंसा’ का सहारा लेना पड़ता है। अर्थात हिंसा के माध्यम को अपनाना पड़ता है। उस समय हिंसा वैध और उपयुक्त रहती है। निश्चित ही, वर्तमान दौर में इस अवधारणा ने अहिंसा बनाम हिंसा के विमर्श को नए सिरे से खड़ा कर दिया है। सवाल यह है कि भारतीय समाज और राष्ट्र की अहिंसा को किस-किस से सम्भावी ख़तरा पैदा हो सकता है; मूलतः हिंसा आंतरिक और बाहरी होती है?