गाँधीजी के निजी जीवन से जुड़ी हमारी सीरीज़ में हमने अब तक यह जाना है कि कैसे उन्होंने अपनी किशोरावस्था में बीड़ी पीने के लिए चोरियाँ कीं, दोस्त के उकसावे पर माँसाहार किया और वेश्यालय तक भी पहुँच गए। लेकिन हमने यह भी देखा कि इन सबसे वह आसानी से निकल भी आए। कारण था उनका सच की शक्ति पर विश्वास। बचपन में सत्यवादी हरिश्चंद्र और श्रवण कुमार के नाटकों ने उनपर ऐसा गहरा असर किया था कि माता-पिता से छुपकर किया गया कोई भी काम उनके लिए नैतिक संकट बन जाता। यही कारण था कि उन्होंने माँसाहार छोड़ दिया और चोरी की बात अपने पिता के सामने स्वीकार कर ली।