पिछली कड़ी में हमने जाना था कि मुंबई में अपनी प्रैक्टिस जमाने में नाकाम रहने के बाद गाँधीजी राजकोट चले आए जहाँ उनके वकील भाई की मदद से उनको छोटा-मोटा काम मिलना शुरू हो गया और घर का ख़र्चा निकलने लगा। लेकिन उन्हीं दिनों एक अंग्रेज़ अफ़सर से उनका झगड़ा हो गया। दरअसल वह अफ़सर गाँधीजी के बड़े भाई से किसी कारण ख़फ़ा था और गाँधीजी अपने उसी भाई के दबाव में उससे मिलने चले गए। परंतु बात बनने के बजाय और बिगड़ गई। गाँधीजी को पहले से जानने के बावजूद वह अफ़सर उनके साथ बेरुखी से पेश आया। यही नहीं, उसने चपरासी के हाथों उन्हें कमरे से निकलवा दिया।
गाँधी-150: वकालत में ऐसे प्रयोग कि वादी ख़ुश, प्रतिवादी भी ख़ुश
- विचार
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- 6 Oct, 2019

गाँधीजी लंदन से जब वकालत की पढ़ाई करके लौटे तो उनके सामने एक अजीब-सी उलझन आई। उनका रास्ता था सच्चाई के रास्ते पर चलने का, लेकिन वकालत के पेशे के बारे में उन्हें कुछ अलग जानकारी मिली थी। इसके बारे में उन्होंने ख़ुद सुन रखा था कि वह झूठ के गोरखधंधे के बिना नहीं चल सकता। इस कड़ी में हम पढ़ेंगे कि कैसे उन्होंने सत्य के प्रयोग के साथ वकालत की।
इसके अपमान से गाँधीजी बहुत दुखी हुए। लेकिन कोई चारा भी नहीं था। उनको यह भी लगा कि इस झगड़े से आगे के लिए उनका रास्ता भी बंद हो गया क्योंकि कोई भी मामला होगा, वह उसी अफ़सर की अदालत में जाएगा और वह निष्पक्षता के साथ फ़ैसला करेगा, इसकी संभावना बहुत कम थी।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश