शब को मय ख़ूब सी पी सुब्ह को तौबा कर ली

प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर में संवाद है- बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे? न्याय के आसन पर बैठे व्यक्ति में ईश्वर देखने वाले निष्पक्ष और निडर न्यायशास्त्र के बुनियादी सिद्धांत की इससे सरल प्रस्तुति नहीं हो सकती है। प्रेमचंद ने उस कहानी के दो प्रमुख पात्रों अलगू चौधरी और जुम्मन शेख के ज़रिये न्याय करते समय व्यवहार में ज़रूरी तथ्यपरकता और ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ के बुनियादी न्यायिक सिद्धांत को बहुत रोचक तरीक़े से स्थापित किया है।
रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई
पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की दास्तान पर यह शेर सटीक बैठता है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस रंजन गोगोई को रिटायर होने के सिर्फ़ चार महीने बाद ही राज्यसभा का सांसद मनोनीत करने के मामले ने न्यायपालिका की बेदाग़ छवि और सरकार से उसके रिश्तों को लेकर नये सिरे से तीखी बहस छेड़ दी है। हालाँकि जस्टिस रंजन गोगोई न्यायपालिका के इतिहास में पहले चीफ़ जस्टिस नहीं हैं जिन्होंने अदालत से रिटायर होने के बाद सियासत के गलियारे में क़दम रखा हो। उनसे पहले कई न्यायाधीश जज की कुर्सी छोड़ने के बाद राजनीति की पारी खेल चुके हैं। लेकिन जस्टिस गोगोई का नाम भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में हुई एक क्रांतिकारी घटना से जुड़ा हुआ है जिसके चलते उनकी अलग छवि बनी थी और उनसे अलग व्यवहार की अपेक्षा थी।