नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार एक तरफ़ जहाँ वोट हासिल करने के लिए दलित बस्तियों में दौरा कर रही है, सहभोज का आयोजन कर रही है, वहीं सरकार दलित लेखकों और दलितों की समस्याओं को विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम से बाहर कर रही है।
दलितों-आदिवासियों को पाठ्यक्रम से बाहर करने की कवायद
- विचार
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- 27 Aug, 2021

दिल्ली विश्वविद्यालय ने तमिलनाडु की दो दलित महिलावादी लेखिकाओं बामा फौस्टीना सूसाईराज और सुखरधारिणी को अंग्रेजी के पाठ्यक्रम से निकाल दिया है। साथ ही महाश्वेता देवी की कहानी “द्रौपदी” को भी पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया।
दिल्ली विश्वविद्यालय ने तमिलनाडु की दो दलित महिलावादी लेखिकाओं बामा फौस्टीना सूसाईराज और सुखरधारिणी को अंग्रेजी के पाठ्यक्रम से निकाल दिया है। इनकी जगह उच्च जाति की लेखिका रमाबाई को लाया गया है। साथ ही महाश्वेता देवी की कहानी “द्रौपदी” को भी पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया।
उच्च शिक्षा में देश की आंतरिक और बाहरी समस्याओं को पढ़ाया जाता है, जिससे छात्र उन समस्याओं को समझ सकें और भविष्य में ज़िम्मेदार पद पर जाने की स्थिति में उन समस्याओं का समाधान निकाल सकें। वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय ने अंग्रेजी विभाग से पूछे बग़ैर पाठ्यक्रम से उन लेखिकाओं को निकालने का फ़ैसला कर डाला, जो समाज को एक नए नज़रिये से देखती रही हैं।