loader

बाबा साहेब आंबेडकर की ख़बर पढ़ वो क्यों रोने लगा था!

बाबा साहब के परिनिर्वाण दिवस पर उनके जीवन संघर्ष और समता-न्याय पर आधारित उनकी उदार लोकतंत्र की अवधारणा से सीखने की ज़रूरत है। जिस हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था और हिन्दुत्व की वैचारिकी से बाबा साहब जीवन भर जूझते रहे, आज उसकी सत्ता है। हिन्दुत्व का मुक़ाबला करने के लिए बाबा साहब ने अपने अंतिम दौर में जो क़दम उठाया था, उस पर भी पहरा बिठा दिया गया है...
रविकान्त

"उनकी मृत्यु से विश्व का लोकतंत्र दुर्बल हो गया। लोकतंत्र की विचारधारा का एक बड़ा हिमायती नष्ट हो गया। संविधान के प्रचंड कार्य और हिंदू संहिता संबंधी कार्य कर उन्होंने राष्ट्र की जो सेवा की, उसका स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा में कहा कि 'हिंदू समाज की जुल्म करने वाली सभी प्रवृत्तियों के ख़िलाफ़ विद्रोह करने वाले व्यक्ति के रूप में आंबेडकर का प्रमुखतया स्मरण रहेगा। उन्होंने उन जुल्म करने वाली प्रवृत्तियों का कड़ा विरोध किया, इसीलिए लोगों के दिल जागृत हुए।... उन्होंने सरकारी कामकाज में बड़ा विधायक और महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने जिनके ख़िलाफ़ विद्रोह किया, उनके ख़िलाफ़ हर एक व्यक्ति को विद्रोह करना चाहिए।” - बाबा साहब के पहले जीवनीकार धनंजय कीर

बाबा साहब डॉ. आंबेडकर इस सदी के महानायक हैं। वह सिर्फ़ दलितों के मसीहा नहीं हैं, बल्कि सभी वंचित तबक़ों के नायक हैं। दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और स्त्रियों के अधिकारों के लिए वह जीवन भर संघर्ष करते रहे। अपनी आख़िरी साँस तक, वह इस देश की आत्मा को समता और न्याय की ज्योति से प्रज्ज्वलित करने का प्रयत्न करते रहे।

ख़ास ख़बरें

आख़िरी दौर में बौद्ध धर्म की ओर मुड़कर उन्होंने हिंदू धर्म की वर्णवादी और पितृसत्तात्मक व्यवस्था से मुक्ति का संदेश दिया। वह बौद्ध धर्म को भारत में फिर से स्थापित करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपनी आख़िरी कृति 'बुद्ध और उनका धम्म' में बौद्ध धर्म की समय-सम्मत व्याख्या की। वह नेपाल से लेकर बनारस तक बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए निकले। लेकिन इसके लिए उन्हें और अधिक समय नहीं मिला। हालाँकि, इसके पहले उन्होंने संविधान में सभी भारतीय नागरिकों को क़ानूनी रूप से समान अधिकार देकर लोकतंत्र और आधुनिक मूल्यों के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया था। आज के ही दिन बाबा साहब का निर्वाण हुआ था।

6 दिसंबर 1956 की सुबह जब बाबा साहब की पत्नी डॉ. सविता आंबेडकर बगीचे का चक्कर लगाकर उन्हें जगाने पहुँचीं, तब तक उनकी धड़कनें थम चुकी थीं। डॉ. सविता के लिए यह मुश्किल घड़ी थी, फिर भी उन्होंने अपने आपको संभालकर रत्तू को बुलाया। बाबा साहब के अत्यंत प्रिय उनकी देखरेख करने वाले नानक चंद रत्तू ने बिलखते हुए कहा, 'बाबा साहब मैं सेवा के लिए आया हूँ ...मुझे काम दीजिए!'

बाबा साहब के निधन के बाद उनके निकट सहयोगियों द्वारा केंद्रीय सरकार के मंत्रियों को ख़बर दी गई। ख़बर मिलते ही दिल्ली स्थित उनके आवास 26, अलीपुर मार्ग पर सभी बड़े मंत्री पहुँचने लगे।

डॉ. आंबेडकर के पहले जीवनीकार धनंजय कीर लिखते हैं,

“बाबा साहब के अंतिम दर्शन के लिए एक घंटे में ही उनके निवास स्थान के बाहर लोगों की प्रचंड भीड़ इकट्ठी हो गई।... प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आंबेडकर के निवास स्थान पर दौड़ते आए। आंबेडकर जब क़ानून मंत्री थे तब पंडित नेहरू विदेशी मेहमानों को उनका परिचय इन शब्दों में कराते थे कि 'आंबेडकर भारतीय मंत्रिमंडल के एक अनमोल रत्न हैं।' जब बाबा साहब उनसे संसद सदन के हॉल में या कहीं समारोह में मिलते थे, तब वे उनके स्वास्थ्य की आस्थापूर्वक पूछताछ करते थे।

नेहरू जी ने आंबेडकर के निवास स्थान पर आते ही बड़ी हमदर्दी से डॉक्टर सविताबाई से पूछताछ की। आंबेडकर के अनुयायियों से उन्होंने पूछताछ की कि अंतिम यात्रा संबंधी किस तरह की व्यवस्था की जाए। आपकी क्या इच्छा है? आंबेडकर के अंतिम दर्शन के लिए गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत, संचार मंत्री जगजीवन राम और राज्यसभा के उपसभापति आदि आ गए। सब बातें ध्यान में रखकर जगजीवन राम ने बाबा साहब की लाश मुंबई ले जाने के लिए हवाई जहाज का प्रबंध किया।" 

दिल्ली की अंतिम यात्रा में उनके दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ का आलम यह था कि शव को हवाई अड्डा पहुँचने में पाँच घंटे लगे। विशेष विमान से उनका शव भोर में तीन बजे मुंबई हवाई अड्डे पर पहुँचा।

dr b r ambedkar death anniversary - Satya Hindi

7 दिसंबर को पूरा बंबई शोकमय था। बाबा साहब ने पूरा जीवन जिनके लिए समर्पित किया था, वे आज अपने मसीहा की एक झलक पाने के लिए बेताब थे। दलितों के घरों में चूल्हा नहीं जला। बाबा साहब उनके अपने थे। बिल्कुल अपने। चर्चित दलित मराठी साहित्यकार दया पवार ने अपनी आत्मकथा 'अछूत' में इस घटना का ज़िक्र आँसुओं से भीगे इन शब्दों में किया है,

"बाबा साहब के फिर अंतिम दर्शन हुए उनके अंत समय में ही। सुबह मैं हमेशा की तरह अपने काम पर निकला। अख़बारों के पहले पेज पर ही एक ख़बर छपी थी। धरती फटने-सा एहसास हुआ। इतना शोकाकुल हो गया, जैसे घर के किसी सदस्य की मृत्यु हुई हो। घर की चौखट पकड़कर रोने लगा। माँ को, पत्नी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इस तरह पेपर पढ़ते ही क्यों रोने लगा? घर के लोगों को बताते ही सब रोने लगे। बाहर निकलकर देखता हूँ कि लोग जत्थों में बातें कर रहे हैं। बाबा साहब का निधन दिल्ली में हुआ था। शाम तक विमान से उनका शव आने वाला था। नौकरी लगे दो-तीन महीने ही हुए होंगे। छुट्टी मंजूर करवाने वेटरनरी कॉलेज गया। अर्जी का कारण देखते ही साहब झल्लाए। बोले,

‘अरे, छुट्टी की अर्जी में यह कारण क्यों लिखता है? आंबेडकर राजनीतिक नेता थे और तू एक सरकारी नौकर है। कुछ प्राइवेट कारण लिख।’

वैसे मैं स्वभाव से बड़ा शांत। परंतु उस दिन अर्जी का कारण नहीं बदला। उलटे साहब को कहा,

‘साहब, वे भी हमारे घर के एक सदस्य ही थे। कितनी अंधेरी गुफाओं से उन्होंने हमें बाहर निकाला, यह आपको क्यों मालूम होने लगा?’ मेरी नौकरी का क्या होगा, छुट्टी मंजूर होगी या नहीं, इसकी चिंता किए बिना मैं राजगृह (बंबई में बाबा साहब का घर) की ओर भागता हूँ। ज्यों बाढ़ आई हो, ठीक उसी तरह लोग राजगृह के मैदान में जमा हो रहे थे। इस दुर्घटना ने सारे महाराष्ट्र में खलबली मचा दी।"

बंबई में बाबा साहब के अंतिम दर्शन के लिए लोग काफी बेचैन थे। शव पहुँचते ही हुजूम उमड़ पड़ा। जब अंतिम यात्रा शुरू हुई तो पूरा बंबई थम गया। गलियाँ, चौक-चौराहे जाम हो गए। गाड़ियाँ सड़कों पर रेंगकर चल रही थीं। घर के बाहर और छतों पर लोग लटके हुए थे। बाबा साहब के शव पर फूलों की वर्षा हो रही थी। दादर के श्मशान भूमि में जब बौद्ध भिक्षुओं ने अंतिम संस्कार की विधियां संपन्न कीं, उस समय वहाँ पाँच लाख से भी ज़्यादा लोग मौजूद थे। 

आंबेडकर के पुत्र यशवंतराव द्वारा चिता को मुखाग्नि देने से पहले एक लाख से ज़्यादा दलितों ने बाबा साहब की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म स्वीकार किया।

डॉ. आंबेडकर के एक अन्य जीवनीकार क्रिस्टोफ जाफ्रलो के अनुसार,

'आंबेडकर सही मायनों में अखिल भारतीय शख्सियत बन गए थे। वह निर्विवाद रूप से समूचे भारत में प्रभाव रखने वाले पहले अस्पृश्य नेता थे।'

दलितों के अलावा समूचे देश का मज़दूर वर्ग बाबा साहब में गहरी श्रद्धा रखता था। मज़दूरों के लिए भी बाबा साहब क़तई अपने थे। धनंजय कीर ने बाबा साहब के प्रति मज़दूरों की श्रद्धा और आत्मीयता का उल्लेख करते हुए लिखा है,

‘7 दिसंबर को बंबई के सभी कल-कारखाने, गोदियाँ, रेल कारखाने और कपड़ा मिलें बंद रहीं। बंबई नगर निगम के सफ़ाई विभाग का नौकर वर्ग काम पर नहीं गया। स्कूल, महाविद्यालय, चित्रपटगृह बंद थे। नागपुर आदि विभिन्न शहरों में स्वयंस्फूर्त हड़ताल की गई। जुलूस निकले। अहमदाबाद की कपड़ा मिलें बंद की गईं। उस भयंकर दुखद ख़बर से अनेक लोगों के हाथ- पाँव गल गए। कुछ लोग तो मूर्छित हो गए।’ 

लंदन टाइम्स से लेकर न्यूयार्क टाइम्स तक दुनिया के सभी बड़े अख़बारों ने बाबा साहब आंबेडकर के निधन की ख़बर को प्रमुखता से छापा।

बाबा साहब के परिनिर्वाण दिवस पर उनके जीवन संघर्ष और समता-न्याय पर आधारित उनकी उदार लोकतंत्र की अवधारणा से सीखने की ज़रूरत है। जिस हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था और हिन्दुत्व की वैचारिकी से बाबा साहब जीवन भर जूझते रहे, आज उसकी सत्ता है। हिन्दुत्व का मुक़ाबला करने के लिए बाबा साहब ने अपने अंतिम दौर में जो क़दम उठाया था, उस पर भी पहरा बिठा दिया गया है। धर्मांतरण विरोधी क़ानून हिन्दुत्व का नया हथियार है। ऐसे में दलितों-पिछड़ों की मुक्ति का क्या रास्ता होगा?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
रविकान्त
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें