loader

ट्रंप की एच-1बी वीजा पॉलिसी अमेरिका भक्ति न निकाल दे!

नए साल पर पहली चर्चा खुशख़बरी की ही होनी चाहिए। तो खुशखबरी यह है कि बाहर गए भारतीयों द्वारा बीते साल में बाहर की कमाई में से बचत करके देश में पैसा भेजने के मामले में दुनिया में सबसे ऊपर आ गया है और दूर दूर तक उसे चुनौती मिलती नज़र नहीं आ रही है क्योंकि उसके लिए चुनौती बनने वाला चीन काफी पीछे हो गया है। बाहर गए भारतीयों ने इस साल 129.1 अरब डॉलर की रकम अपने बंधु-बांधवों और देश को भेजी जो वैश्विक हिसाब का 14.3 फीसदी है। 

चीन का नंबर अब काफी पीछे है और उसका हिस्सा मात्र 5.3 फीसदी का हो गया है जबकि अभी हाल तक वह कभी भी दस फीसदी से नीचे नहीं गया था। भारत के बाद मैक्सिको का नंबर आता है पर अंग्रेजी जानने वाले ऐसे ‘मजदूरों’ के मामले में पाकिस्तान ही हमारे बाद है जिसका हिसाब और भी पीछे है। विदेशी मजदूरी/कमाई के इस हिसाब का महत्व तब और साफ दिखता है जब हम पाते हैं कि हमारी जीडीपी में इसका हिस्सा 3.3 फीसदी का हो जाता है। और हमारे लिए तो नहीं लेकिन दुनिया के काफी देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मात्रा इस कमाई के नीचे ही है।

ताज़ा ख़बरें

पर हमारे लिए भी यह कमाई काफी महत्वपूर्ण है खासकर विदेशी मुद्रा की कमाई के लिहाज से भी। और चीन की घटती कमाई पर ज्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि एक तो अंग्रेजी के चलते उसके बीपीओ क्षेत्र में हमारे जितने ‘मजदूर’ उपलब्ध भी नहीं हैं। दूसरे वहां युवा आबादी का अनुपात तेजी से कम होने लगा है। और तीसरी वजह उसका खुद का एक बड़ी आर्थिक ताक़त बनने से अपने सारे कामगार हाथों को काम उपलब्ध कराना है। दूसरी ओर हम हैं जिसके डॉलर कमाने वाले ‘मजदूरों’ में अंग्रेजी ज्ञान काफी बड़ी ताक़त है और बीपीओ क्षेत्र से होने वाली कमाई हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बन गई है। अरब जगत या अन्य देशों में शारीरिक श्रम करके कमाई करने वाले कम नहीं हैं पर भारत में कंप्यूटर क्रांति का मतलब सेवा क्षेत्र से कमाई बढ़ाना है। और इस ‘सेवा’ का लाभ अमेरिका और यूरोप समेत किस-किस देश को कितना मिला है, इसका हिसाब लगाने की फुरसत भी हमें नहीं है। पर डॉलर में कमाई के चलते इसकी मात्रा और महत्व दोनों काफी अधिक हैं। पर मुश्किल यह है कि आज अचानक इस कमाई पर ग्रहण उपस्थित हो गया है।

सो, पहली खुशखबरी से भी ज्यादा महत्व की चेतावनी यही कि हमारे बीपीओ कारोबार के लिए सबसे बड़ा बाजार अमेरिका अकारण वीजा के नियमों में बदलाव करके भारतीय पेशेवर कम्यूटरकर्मियों का अपने यहाँ काम करना मुश्किल कर रहा है। कई महीने पहले जब डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने चुनाव प्रचार के क्रम में वीसा नियम सख्त करने और ‘अवैध’ प्रवासियों को भगाने की बात उठाई तब से यह मामला अमेरिका, पूरी दुनिया और वहां काम कर रहे भारतीयों के बीच सर्वोच्च प्राथमिकता का मुद्दा बना हुआ है लेकिन हमारी सरकार और उसकी एजेंसियां कान में तेल डालकर सोई पड़ी हैं। 

मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (मागा) नाम से पहचान वाले ट्रम्प भक्त हुड़दंग मचाए हुए हैं जबकि ट्रम्प की जीत को अपनी जीत बताने वाले भारतीय भक्त इस सवाल पर चुप्पी साधे हुए हैं तो अमेरिकी भक्त लगभग जातीय दंगा शुरू कराने वाली भाषा बोलने लगे हैं क्योंकि वहां सरकार बदल चुकी है और डोनाल्ड ट्रम्प बस आने ही वाले हैं। ऐसे-ऐसे अपमानजनक और डरावने वीडियो क्लिप भारत तक पहुँचने लगे हैं जिनसे लगता ही नहीं कि अमेरिका कोई सभ्य समाज है। 
हम जानते हैं कि ट्रम्प के परम सहयोगी और टेसला के मालिक एलन मस्क ने भी उनकी इस राय से सहमति जताई थी और लगातार वीजा नियमों में बदलाव की वकालत करते रहे हैं। नई सरकार पर उनकी छाप के अंदाजे से यह भी घबराहट का विषय बन गया था।

अब कारण जो भी रहे हों पर साल जाते-जाते मस्क ने अपनी बात थोड़ी हल्की की तब काफी सारे लोगों ने राहत की सांस ली। मस्क ने कहा कि वीजा प्रणाली में गड़बड़ियां हैं और इन्हें दूर किया जा सकता है। अब अवैध ढंग से घुसपैठियों की वकालत कौन करेगा लेकिन वे वीजा-पासपोर्ट वाले तो हैं नहीं। पर जो लोग वीजा, खासकर एच-1 बी वीजा लेकर गए हैं उनमें अवैध लोग कैसे जा सकते हैं, यह समझ से परे है और फिर उनके खिलाफ आग उगलने का क्या कारण है, यह समझना मुश्किल है। हर काम में कमाई करने का अभ्यस्त अमेरिका हर वीजा के लिए 35 हजार डॉलर की फीस वसूलता है और रेजिडेंसी के स्पॉन्सरशिप के लिए 50 हजार डॉलर की फीस लेता है। 

विचार से और

ये लोग अपनी मौजूदगी और बौद्धिक/शारीरिक श्रम से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कितना या कैसा योगदान देते हैं (क्योंकि सब बुलाए हुए लोग हैं) वह हिसाब अलग है, लेकिन उनकी अमेरिका में तैनाती कराने में ही हमारी सॉफ्टवेयर कंपनियों का हाल खराब होता है। अब क्या होगा यह कहना मुश्किल है लेकिन इतना तो लग रहा है कि एक बार फिर उनका ही मुंडन प्रमुख रूप से होने वाला है। और अगर अमेरिका वीजा या वर्क परमिट को महंगा करता है तो इसका वैश्विक असर होगा।

कहना न होगा कि सिर्फ भक्त ही नहीं, यहां के भगवान लोगों के लिए भी अभी तक यह समस्या ध्यान देने लायक नहीं बनी है। वे कभी पुजारी तो कभी ग्रंथी की तनख्वाह या मंदिर/मस्जिद का खेल करके अमेरिका से भी खराब सामाजिक स्थिति का संदेश दुनिया को दे रहे हैं, वे उन रोहिंग्या शरणार्थियों को भी चुनाव में मुद्दा बना रहे हैं जिन्हें आधिकारिक रूप से शरणार्थी बनाया गया है और जिनके प्रति सरकार की जवाबदेही तय है। असल में सबका ध्यान देश की आर्थिक राजधानी का चुनाव जीतने के बाद राजधानी दिल्ली के नन्हें एसेम्बली के चुनाव पर है जिसके अधिकारों पर सभी शक करते रहे हैं। उनका मुकाबला असल में ‘मागा’ (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) से है। ट्रम्प भक्तों का अगेन तो बहुत कम दिनों के फासले का है। हमारे मेक इंडिया ग्रेट अर्थात भारत महान वालों को यह भी तय करना है कि वे किस भारत की बात कर रहे हैं। शायद उनको इससे कोई लेना देना भी है, यह नहीं लगता।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अरविंद मोहन
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें