भारतीय उपमहाद्वीप में पत्रकार और मीडियाकर्मी हल्ला मचा रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों में मीडिया की आज़ादी पर अंकुश लगा दिया गया है। भारत में बहुत से पत्रकार शिकायत करते हैं कि वे सरकार से कोई सवाल नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करने पर वे अपनी नौकरी खो सकते हैं या उन पर देशद्रोह और अन्य आरोपों को लेकर मुक़दमा दर्ज किया जा सकता है, जैसा कि वास्तव में कई पत्रकारों के साथ हो भी चुका है। वे पाकिस्तान में जंग ग्रुप ऑफ़ पब्लिकेशंस के मालिक मीर शकीलुर रहमान की गिरफ्तारी और लंबे समय तक हिरासत में रहने के ख़िलाफ़ तथा सरकार द्वारा पत्रकारों को परेशान करने का आरोप लगाते हैं। लेकिन क्या पत्रकारों के ये आरोप उचित हैं? मेरे हिसाब से ऐसा नहीं है और इसके पक्ष में मेरे अपने कुछ तर्क हैं।
क्या हमारा मीडिया स्वतंत्रता का हक़दार है?
- विचार
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- 26 Apr, 2020

क्या हमारा मीडिया वह काम कर रहा है, जिसे करने की उससे अपेक्षा की जाती है। क्या वह अपनी जिम्मेदारी को सही ढंग से निभा रहा है? वह समाज के ज़रूरी मुद्दों को उठाने के बजाय अंधविश्वास फैलाने और सरकार की चाटुकारिता करने में व्यस्त है। ऐसा करके वह लोगों का ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटका रहा है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या मीडिया किसी आज़ादी का हक़दार है?
भारत और पाकिस्तान में मीडिया को जो भूमिका निभानी चाहिए, उसे समझने के लिए हमें पहले ऐतिहासिक संदर्भ को समझना होगा।
हमारा उपमहाद्वीप वर्तमान में अपने इतिहास के एक परिवर्तनशील युग से गुजर रहा है - एक सामंती कृषि समाज से आधुनिक औद्योगिक समाज की ओर।