उत्तर प्रदेश की खस्ताहाल क़ानून व्यवस्था चर्चा में है। प्रदेश के तमाम ज़िलों में हत्याएँ, बलात्कार, जातीय संघर्ष की ख़बरें आ रही हैं। हिंसा के शिकार ज़्यादातर दलित-पिछड़े वर्ग के लोग बन रहे हैं। ये आरोप लग रहे हैं कि राज्य प्रशासन और पुसिल महकमा निष्पक्ष रूप से कार्रवाई नहीं कर रहा है। अपराधियों की जगह पीड़ित तबक़े के लोग ही सताए जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में बढ़ गए हैं दलित-पिछड़ों पर अत्याचार
- विचार
- |
- |
- 16 Jun, 2020

उत्तर प्रदेश की खस्ताहाल क़ानून व्यवस्था चर्चा में है। प्रदेश के तमाम ज़िलों में हत्याएँ, बलात्कार, जातीय संघर्ष की ख़बरें आ रही हैं। हिंसा के शिकार ज़्यादातर दलित पिछड़े वर्ग के लोग बन रहे हैं।
इस समय राज्य का सबसे चर्चित मामला प्रतापगढ़ के पट्टी गोविंदपुर का है। गाँव के एक कुर्मी जाति के व्यक्ति के खीरे के खेत में एक ब्राह्मण के जानवर चले जाने को लेकर विवाद शुरू हुआ। उसके बाद पुलिस की मौजूदगी में कुर्मी जाति के लोगों के घर, जानवर जला दिए गए। घर में घुसकर तोड़फोड़ की गई। जैसा कि ऐसे मामलों में होता है, दोनों पक्षों की तरफ़ से प्राथमिकी दर्ज होती है। स्थानीय पुलिस ने ब्राह्मण पक्ष से 10 प्राथमिकियाँ संगीन धाराओं में दर्ज कर लीं। वहीं कुर्मी पक्ष की ओर से तमाम पूर्व मंत्रियों, विधायकों और यहाँ तक कि मोदी सरकार द्वारा संवैधानिक दर्जा पाने वाले पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से नोटिस जारी होने के बावजूद कुर्मी पक्ष की ओर से 2 प्राथमिकी दर्ज हुई, वह भी बेहद सामान्य धाराओं में। पुलिस ने कुर्मी समुदाय से गाँव में मिलने गए 66 लोगों के ख़िलाफ़ विभिन्न धाराओं में मुक़दमा दर्ज कर लिया जिसमें पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर और बीएसपी सरकार में ताक़तवर मंत्री रहे बाबूलाल कुशवाहा का नाम भी शामिल है। इसके अलावा कुर्मी महासभा के अध्यक्ष सहित 26 लोगों के ख़िलाफ़ धारा 144 के उल्लंघन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने को लेकर मुक़दमा दर्ज कर लिया गया।