ये कुछ ऐसी कहानियाँ हैं जिनका कि रिकॉर्ड और याददाश्त दोनों ही में बने रहना ज़रूरी है। कोरोना को एक-न-एक दिन ख़त्म होना ही है, ज़िंदा तो अंततः इसी तरह की लाखों-करोड़ों कहानियाँ ही रहने वाली हैं। ये तो केवल वे कहानियाँ हैं जो नज़रों में पड़ गईं, वे अभी उजागर होना बाक़ी हैं जो महामारी की समाप्ति के बाद आँसुओं से लिखी जाएँगी। एक-एक शख़्स के पास ही ऐसी कई कहानियाँ कहने को होंगी। प्रस्तुत कहानियाँ न सिर्फ़ सच्ची हैं, देश के प्रतिष्ठित अख़बारों में प्रकाशित भी हो चुकी हैं। हम चाहें तो इन्हें और इन जैसी दूसरी कहानियों को स्मृतियों में संजो कर रख सकते हैं, आगे कभी आ सकने वाले ऐसे ही तकलीफ़ भरे दिनों में एक-दूसरे से बाँटने के लिए।