गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया कि 2020 में आईपीसी की 'राज्य के ख़िलाफ़ अपराध' शीर्षक अध्याय की धारा 124 (अ) यानी राष्ट्र-द्रोह के आरोप में जिन 96 लोगों को गिरफ़्तार किया गया, उनमें से केवल दो को सज़ा हुई जबकि 29 बरी हो गए और 53 के खिलाफ एक साल बाद भी पुलिस ने चार्जशीट दाखिल नहीं किया। कुल गिरफ़्तार लोगों में 68 बीजेपी-शासित चार राज्यों (कर्नाटक-22, असम -17, जम्मू-कश्मीर-11, यूपी-10, और नागालैंड-8) से हैं।
प्रधानमंत्री जी, असली राष्ट्र-द्रोही कौन हैं?
- विचार
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- 13 Feb, 2021

जहाँ एक तरफ ये सरकारें भाषण देने वालों को देशद्रोह के मुकदमे में फँसा रही हैं और महीनों जेल में रहने के बाद अदालतों से उन्हें राहत मिल रही है, वहीं उन सरकार के कर्मचारियों द्वारा कोरोना जैसे संकट में फ़र्जीवाड़ा करना क्या असली राष्ट्र-द्रोह नहीं है?
आतंकवाद-विरोधी टाडा और पोटा के कड़े विकल्प के रूप में लाये गए यूएपीए के तहत 2016-19 के बीच जिन लोगों को निरुद्ध किया गया उनमें से आज तक केवल 2.2 प्रतिशत को ही सज़ा हुई। सरकार ने कहा कि वह धर्म के आधार पर आँकड़े नहीं रखती।