पटना के जिस ऐतिहासिक गांधी मैदान में 5 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान करते हुए दिनकर की पंक्तियों को दोहराया था कि 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है', उसी मैदान पर 3 मार्च को आरजेडी और विपक्ष की जनविश्वास रैली संपन्न हुई। अनुमान है कि इस रैली में 10 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए। इस मैदान पर अब तक के इतिहास की संभवतया यह सबसे बड़ी भीड़ थी। लेकिन भीड़ से ज्यादा महत्वपूर्ण था, लोगों का उत्साह और मंच पर मौजूद नेताओं के प्रति उनका विश्वास। लोगों में मौजूदा सत्ता के प्रति रोष इतना था कि जैसे ही नरेंद्र मोदी का नाम आता था लोग हिकारत से हुंकार उठते थे।

परिवार को लेकर लालू यादव की टिप्पणी के बाद पूरा देश 'मोदी का परिवार' अभियान चलाया गया। तो क्या उनके परिवार में किसान, मणिपुर की महिलाएँ, हाथरस की बेटियाँ भी आती हैं?
मंच पर इंडिया गठबंधन के तमाम नेता मौजूद थे। एक तरफ वामपंथी पार्टियों के नेता डी राजा, सीताराम येचुरी और दीपांकर भट्टाचार्य मौजूद थे तो दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के दोनों दिग्गज 'जननायक' राहुल गांधी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे थे। यूपी से सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी उपस्थित थे। तीनों नौजवानों राहुल गांधी, अखिलेश और तेजस्वी यादव ने मोदी सरकार को ललकारते हुए उसे उखाड़ फेंकने का संकल्प किया। तेजस्वी यादव पिछले तीन-चार महीने के भीतर बेहद मंझे हुए वक्ता के तौर पर उभरे हैं। 28 जनवरी को जब एक बार फिर नीतीश कुमार ने पलटी मारी और नौंवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उसके बाद तेजस्वी यादव ने विधानसभा में जो भाषण दिया था उस पर समूचे उत्तर भारत में चर्चा हुई। तेजस्वी यादव एक ऐसे नौजवान नेता के रूप में उभरे हैं जिनमें जोश और जज्बा ही नहीं बल्कि होश और हवास भी है। पटना के गांधी मैदान के मंच पर दहाड़ते हुए उन्होंने नरेंद्र मोदी के औरंगाबाद के भाषण पर जमकर पलटवार किया।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।