लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कर्नाटक के भाजपा सांसद अनंत कुमार हेगड़े ने संविधान को बदलने के बारे में बयान दिया है। नरेंद्र मोदी ने अबकी बार 400 पार का लक्ष्य क्यों रखा है? इसकी असली वजह बताते हुए अनंत कुमार हेगड़े ने कहा है कि संविधान बदलने और धर्म की रक्षा के लिए इतना बड़ा बहुमत चाहिए। अनंत कुमार हेगड़े के इस बयान को केवल शरारतपूर्ण या सनसनी पैदा करने वाला नहीं माना जा सकता। दरअसल यह बीजेपी और आरएसएस का असली एजेंडा है, जो एक सांसद के जुबान के जरिए प्रकट हुआ है। इसलिए राहुल गांधी ने अनंत कुमार हेगड़े के इस बयान पर जोरदार हमला बोला है।
राहुल गांधी ने लिखा कि नरेंद्र मोदी और भाजपा का लक्ष्य बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के संविधान को खत्म करना है। उन्हें न्याय, बराबरी, नागरिक अधिकार और लोकतंत्र से नफरत है। राहुल गांधी ने गुजरात में अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान इस बात को खास तौर पर रेखांकित किया। दलित, पिछड़े और आदिवासी समाज के नौजवानों को संविधान की रक्षा के लिए आह्वान करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि बाबा साहब के संविधान को बचाने के लिए आप लोग आगे आएं। इंडिया आपके साथ खड़ा है। राहुल गांधी आपके साथ है।
अनंत कुमार हेगडे के बयान से भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के छिपे हुए मंसूबे उजागर हुए हैं। देश के मतदाताओं को समझ लेना चाहिए कि 'अबकी बार 370 पार' का नारा क्यों दिया जा रहा है? नरेंद्र मोदी का 370 पार का लक्ष्य संविधान को बदलने के लिए है। दरअसल, संविधान में आमूलचूल परिवर्तन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत तथा आधे से अधिक राज्यों में संबंधित पार्टी की सरकारें होना जरूरी हैं।
अनंत कुमार हेगड़े ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि हमारा 370 पार करने का लक्ष्य संविधान को बदलने और धर्म की रक्षा करने के लिए है। ऐसे में दो सवाल उठते हैं। पहला, अगर संघ और भाजपा की यही मंशा है तो नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत खुले तौर पर इसका ऐलान क्यों नहीं करते? क्या उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए डंके की चोट पर यह ऐलान नहीं करना चाहिए कि 'तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें संविधान बदलकर दूंगा'। मोदी और भागवत को खुलकर बोलना चाहिए कि फिर से सत्ता में आने पर हम डॉ. अंबेडकर का संविधान बदलकर हिंदू राष्ट्र का नया संविधान लाएंगे। हालांकि यह आरएसएस का कोई नया एजेंडा नहीं है। संघ ने हमेशा से संविधान, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का अनादर किया है। संविधान पारित होने के 3 दिन बाद 30 नवंबर 1949 को आरएसएस के मुख्य पत्र ऑर्गनाइजर ने अपने संपादकीय में लिखा था कि, “भारत के संविधान में कुछ भी भारतीय नहीं है क्योंकि इसमें मनु की संहिताएं नहीं है। इसलिए उन्हें यह संविधान स्वीकार नहीं है।”
सर्वविदित है कि आरएसएस ने अपने मुख्यालय पर चार दशक तक तिरंगा नहीं फहराया। राष्ट्रगान को लेकर भी आरएसएस ने भ्रम फैलाया कि इसमें इंग्लैंड के राजा का महिमामंडन किया गया है। जबकि यह बात पूरे तरीके से निराधार और असत्य है। इसी तरह तीन रंगों की पट्टियों के मध्य में नीले रंग के बौद्ध धर्म के प्रतीक धर्मचक्र परिवर्तन से युक्त तिरंगे को आरएसएस अशुभ कहता रहा। राष्ट्रध्वज का आरएसएस ने कभी दिल से सम्मान नहीं किया। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि 20 जनवरी 2024 को जब राम मंदिर का उद्घाटन हुआ तो पूरे देश को भगवा झंडों से पाट दिया गया। इसका व्यापक प्रभाव 26 जनवरी को होने वाले गणतंत्र दिवस पर पड़ा। पूरे देश में लहराते भगवा झंडों से तिरंगे की आभा और शान फीकी हुई। यह तिरंगे का अपमान है और भगवा को राष्ट्रध्वज के रूप में थोपने की नापाक कोशिश।
हालांकि यह कोई पहली बार दिया गया बयान नहीं है और न ही अनंत कुमार हेगडे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने संविधान को बदलने और हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कही है। पिछले 10 साल के नरेंद्र मोदी के शासनकाल में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए तमाम हिंदूवादी संगठन और अनेक गेरूआधारी स्वघोषित हिंदू धर्म रक्षक भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए व्याकुल हैं। ऐसे बाबाओं और कट्टर हिन्दू संगठनों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है। तमाम गेरुआधारी रातदिन दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को मिलने वाले आरक्षण को कोसते रहते हैं। दलितों वंचितों के मसीहा डॉ अंबेडकर से इनकी नफरत कितनी गहरी है, यह किसी से छिपा नहीं है।
नरेंद्र मोदी की सत्ता इनको पालती-पोसती रही है। ऐसे सामंती तत्व अराजक ही नहीं बल्कि आतंकी बन चुके हैं। ये देश में धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के खिलाफ माहौल पैदा बना रहे हैं। मोदी सरकार का ये अघोषित एजेंडा है। संविधान और दलितों, पिछड़ों के अधिकारों से संघ का पुराना बैर है। आरएसएस को पेशवाई हिन्दूशाही चाहिए, जो बाबासाहब के संविधान को मिटाए बिना संभव नहीं है। इसीलिए वे लगातार इसके लिए सक्रिय हैं। चूंकि संघी ब्राह्मणवादियों की आबादी बहुत कम है इसलिए वे इसे जबरन नहीं थोप सकते। वे धीरे-धीरे अंग्रेजों की तरह सांस्कृतिक आभामण्डल रचकर लोगों के मन में हिंदुत्व को ठूंसकर धर्मनिरपेक्ष संविधान के प्रति नफरत पैदा करना चाहते हैं। लेकिन वे नहीं जानते कि संविधान, लोकतंत्र और अधिकारों का डीएनए अब दलितों पिछड़ों के रगों में गहरा समाहित हो चुका है। अलबत्ता हेगड़े का यह बयान एक खतरे की तरफ जरूर संकेत करता है।
हालांकि यह कोई नया खतरा नहीं है। इस खतरे को डॉ. अंबेडकर ने बहुत पहले ही भांप लिया था। इसीलिए उन्होंने संवैधानिक मूल्यों और बौद्ध धम्म की सांस्कृतिक धारा का एक विकल्प दे दिया था। अंबेडकर को जानने-समझने और मानने वाले लोग आज नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व के खिलाफ सीधे मुकाबले में हैं। उसमें राहुल गांधी, एमके स्टालिन से लेकर तमाम अंबेडकरवादी सामाजिक सांस्कृतिक संगठन और बुद्धिजीवी लगातार आरएसएस के एजेंडे के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
हिन्दुत्ववादी भाजपा जब भी सरकार में आई, उसने संविधान को बदलने की कोशिश की। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में एन. वैंकट चलैया की अध्यक्षता में संविधान समीक्षा आयोग बनाया गया। विरोध के चलते अटल बिहारी वाजपेयी की मंशा पूरी नहीं हो सकी। दस साल तक केंद्र में रही यूपीए की सरकार में संविधान और लोकतंत्र की संस्थाएं मजबूत हुईं। 2014 में राष्ट्रवाद के छद्म और अच्छे दिन के वादे के नाम पर पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी सत्ता में आई। नरेंद्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद हिन्दुत्ववादी संगठन खुलकर डॉ अम्बेडकर के संविधान को बदलकर हिन्दू राष्ट्र का नया संविधान लागू करने के लिए मचलने लगे। सरकारी संरक्षण में ऐसे संगठन और तमाम कट्टरपंथी बेलगाम हो गए। इसके अलावा संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी संविधान के खिलाफ लिखने-बोलने लगे।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे वर्तमान राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई ने 8 अगस्त 2023 को संसद में कहा कि संविधान के मूल ढांचे पर बहस हो सकती है। जबकि केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य मामले में (1973) सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की बेंच ने स्पष्ट फैसला दिया था कि संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। 15 अगस्त 2023 को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देवराय ने मिंट अखबार में एक लेख लिखा। 'देयर इज ए केस फ़ॉर वी द पीपल टू इम्ब्रेस अ न्यू कॉन्स्टिट्यूशन' शीर्षक लेख में उन्होंने लिखा कि 'भारत का संविधान औपनिवेशिक विरासत है। अब हमें एक नए संविधान की जरूरत है।' यानि डॉ अम्बेडकर के संविधान को बदलकर नया संविधान लिखा जाना चाहिए। अब भाजपा का एक सांसद खुलकर इस नाम पर वोट मांग रहा है।
अब दूसरे सवाल पर आते हैं। इस देश का बहुसंख्यक हिन्दू दलित, पिछड़ा, आदिवासी और अल्पसंख्यक तथा महिलाएं जो संविधान द्वारा संरक्षित हैं ; क्या संविधान बदलने के लिए बीजेपी को वोट करेंगे? जिस संविधान के जरिए देश के वंचित तबकों को मनुष्य होने का अधिकार मिला, नौकरी, शिक्षा पाने का अवसर मिला, स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार मिला, वोट देने का अधिकार मिला, जिस संविधान के जरिए दलितों, शूद्रों, महिलाओं को सदियों की सामाजिक गुलामी से मुक्ति मिली, जिस संविधान के जरिए इन तबकों को अपने व्यक्तित्व के विकास का मौका मिला, उस संविधान को बदलने और मनुस्मृति के आधार पर हिंदू राष्ट्र के नए संविधान के लिए क्या यह समाज बीजेपी को वोट करेगा?
सच्चाई ये है कि ये मुद्दा भाजपा को बहुत भारी पड़ने जा रहा है। राहुल गांधी लगातार सामाजिक न्याय की बात कर रहे हैं। ऐसे में सामाजिक न्याय का दस्तावेज 'संविधान' को मिटाने की साजिश बीजेपी और आरएसएस को बहुत भारी पड़ेगी। दलित वंचित तबका आने वाले चुनाव में संविधान बदलने का मंसूबा रखने वालों को ही बदलने के मूड में है।
(लेखक दलित चिंतक है)
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