कोरोना संकट के समय देश में तालाबंदी है लेकिन धार्मिक नफ़रत और हिंसा की खिड़कियाँ खुली हुई हैं। दिल्ली जैसे महानगरों से लेकर छोटे शहरों में सब्जी और फल बेचने वालों से उनका नाम पूछा गया। उनका आधार कार्ड देखा गया। अगर वह मुसलमान है तो उसे गलियों से खदेड़ दिया गया। कुछ जगहों पर उन्हें आतंकवादी कहकर मारा पीटा गया। उसके बाद ठेलों पर भगवा झंडे दिखने लगे। बिहार में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने हिन्दू रेहड़ीवालों को झंडे बाँटे। यह हिन्दुत्ववादी राजनीति के दीर्घ प्रोजेक्ट का हिस्सा है। दुर्भाग्य से अब इस प्रोजेक्ट में लोकतंत्र का चौथा खंभा भी खुले तौर पर शामिल हो गया है। तब्लीग़ी जमात के बहाने गोदी मीडिया ने पूरे मुसलिम समुदाय का दानवीकरण किया। इसी का नतीजा है कि आज आम हिन्दुओं के मन में मुसलमानों के प्रति संदेह और अविश्वास पुख्ता हुआ है। गाँवों में यह बात लगभग स्थापित हो चुकी है कि मुसलमान आतंकवादियों के कारण कोरोना महामारी आई है। पहले आमतौर पर शहरी मध्यवर्ग में मुसलमानों के प्रति घृणा और अविश्वास की भावना दिखती थी। अब उसका गाँवों तक विस्तार हो गया है।