तब्लीग़ी जमात का इतिहास भले ही अच्छा रहा हो लेकिन हालिया प्रकरण से उसकी छवि खराब हुई है। खुद मुसलिम समुदाय द्वारा तब्लीग़ी जमात के दिल्ली मरकज़ की आलोचना की गई। मौलाना साद के कथित ऑडियो के आधार पर सभी लोगों ने उसे कठघरे में खड़ा किया। लोगों ने माना कि मौलाना साद ने मज़हब के नाम पर जहालियत को परोसा।

कोरोना जैसी महामारी के समय भी मीडिया के एक वर्ग ने मुसलिम समुदाय को निशाना बनाने की भरपूर कोशिश की और सांप्रदायिक माहौल बनाने में कसर नहीं छोड़ी।
नाकामी छिपाने की कोशिश?
यहां पर एक बड़ा सवाल उठता है कि लॉकडाउन के समय कोई प्रशासनिक कदम क्यों नहीं उठाया गया? सवाल यह है कि क्या प्रशासन ने जानबूझकर जमात के कार्यक्रम की अनदेखी की? क्या सरकार कोरोना संकट से निपटने में अपनी नाकामी को मरकज़ के पीछे छिपाना चाहती है? अगर नाकामी छिपाना ही मकसद है तो केवल मरकज़ का ही सहारा क्यों? म.प्र. में बीजेपी सरकार के शपथ लेने से लेकर योगी आदित्यनाथ द्वारा राम मंदिर के उद्घाटन को तो टाला ही जा सकता था।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।