मुंबई के बांद्रा इलाक़े में जमा हुई भीड़ का मामला हाल-फ़िलहाल के लिए सुलझा लिया गया लगता है। प्रवासी मज़दूरों को ढेर सारे आश्वासनों के साथ उनके ‘दड़बों’ में वापस भेज दिया गया है। कथित तौर पर अफ़वाहें फैलाकर भीड़ जमा करने के आरोप में एनसीपी के एक नेता के साथ एक टीवी पत्रकार को भी आरोपी बनाया गया है। एक हज़ार अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ भी एफ़आईआर दर्ज की गई है। मज़दूरों के लिए ट्रेन चलाने को लेकर पैदा की गई भ्रम की स्थिति से रेल मंत्रालय ने ख़ुद को बरी कर लिया है। क्या मान लिया जाए कि अब सबकुछ सामान्य हो गया है और फडणवीस को भी कोई शिकायत नहीं बची है?
नोटबंदी की तरह लॉकडाउन! वही अचानक घोषणा, अफवाह और अफरा-तफरी
- विचार
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- 16 Apr, 2020

मानसून के दौरान भारी वर्षा से ऊँचे बाँधों के जलाशयों में पानी का स्तर पहले तो ख़तरे के निशान तक पहुँचने दिया जाता है और फिर बिना इस बात की चिंता किए कि उससे और कितनी तबाही होगी सारे गेट एक साथ खोल दिए जाते हैं। कल्पना ही की जा सकती है कि तीन मई के बाद अगर मानवीय कष्टों से लबालब बाँधों के जलाशयों के दरवाज़े एकसाथ खोलने पड़ गए तो क्या होगा!